ब्रिटेन के बाद अब अमेरिका में मंकीपॉक्स का मरीज मिला। टेक्सास में दुर्लभ बीमारी मंकीपॉक्स का पहला मामला सामने आया है। इसकी पुष्टि अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी सीडीसी ने की है। जिस मरीज में बीमारी पाई ई वो नाइजीरिया से लौटा है। घर आते वक्त वह अटलांटा और जॉर्जिया में रुका था। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है, यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि सफर के दौरान मरीज के सम्पर्क में कौन-कौन लोग आए। इससे पहले जून में मंकीपॉक्स के दो मामले ब्रिटेन में सामने आए थे।

टेक्सास में मंकीपॉक्स वायरस का यह पहला मामला है। स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, मरीज टेक्सास के डेल्लास लव फील्ड एयरपोर्ट पर 9 जुलाई को पहुंचा था। उसे पास के ही एक हॉस्पिटल में आइसोलेट किया गया था। अब उसकी स्थिति बेहतर है। सीडीसी के मुताबिक, मरीज में मंकीपॉक्स को वो स्ट्रेन मिला है जो खासतौर पर नाइजीरिया समेत पश्चिम अफ्रीका में देखा जा चुका है। मंकीपॉक्स के पिछले 6 मामलों में भी मरीज का नाइजीरिया कनेक्शन मिला था। यह वायरस कैसे फैल रहा है वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे हैं।

क्या है मंकीपॉक्स वायरस

मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है जो स्मॉलपॉक्स से मिलती-जुलती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, मंकीपॉक्स एक जूनोटिक वायरल डिजीज है। यानी ये वायरस संक्रमित जानवर से इंसानों में पहुंचता है। इसके ज्यादातर मामले सेंट्रल और पश्चिमी अफ्रीका के वर्षावनों में पाए जाते हैं। मंकीपॉक्स का वायरस संक्रमित संक्रमित जानवर के ब्लड, पसीना या लार के सम्पर्क में आने पर इंसान में फैलता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, मंकीपॉक्स का वायरस स्मॉलपॉक्स के समूह से ताल्लुक रखता है।

मंकीपॉक्स के लक्षण

मंकीपॉक्स के लक्षण स्मॉलपॉक्स की तरह ही होते हैं। अगर स्किन पर छाले व रैशेज, बुखार, सिरदर्द, बैकपैन, मांसपेशियों में दर्द और थकान महसूस हो तो अलर्ट हो जाएं। ये मंकीपॉक्स के वायरस से संक्रमित होने का इशारा है।

ब्रिटेन की स्वास्थ्य एजेंसी एनएचएस का कहना है, संक्रमण के 1 से 5 दिन के बाद स्किन पर चकत्ते दिखते हैं। यही इसका शुरुआती लक्षण होता है। इन चकत्तों की शुरुआत चेहरे से होती है, धीरे-धीरे ये शरीर के दूसरे हिस्सों तक फैल जाते हैं। ये चकत्ते धीरे-धीरे छालों में तब्दील होने लगते है और इनमें लिक्विड भर जाता है।

WHO के मुताबिक, मंकीपॉक्स के मामले में मौत का खतरा 11 फीसदी तक रहता है। स्मॉलपॉक्स से सुरक्षा के लिए ‘वैक्सीनिया इम्यून ग्लोब्यूलिन’ नाम का टीका लगाया जाता है। एक ही समूह का वायरस होने के कारण मंकीपॉक्स के संक्रमण से बचाने के लिए भी यही वैक्सीन मरीज को लगाई जाती है।

इस वायरस की खोज 1958 में केकड़े खाने वाले मेकाक बंदरों में हुई। इसका पहला मामला 1970 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक के कॉन्गो में सामने आया था। इसके बाद धीरे-धीरे दुनिया के कई देशों में फैला। 2003 में पहली बार अमेरिका में इसके मामले सामने आए। यह वायरस हवा में मौजूद ड्रॉप्लेट्स के जरिए फैलता है।

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