दार्जिलिंग में स्थित इस पीस पगोडा में बुद्ध के चार अवतारों को प्रदर्शित किया गया है। दो मंजिला इस इमारत को जापानी मंदिरों की ही तरह सफेद पत्थर से व गोल आकृति में बनवाया गया है। 28.5 मीटर ऊंचे व 23 मीटर चौड़े इस शांति स्तूपा के पास ही एक जापानी मंदिर भी स्थित है। पूर्वी हिमालयों में स्थित यह अकेला बुद्ध शांति स्तूपा है। पीस पगोडा के चारों ओर बुद्ध के चारों अवतारों को क्रमशः सोते, खड़े, बैठे और ध्यान में लीन दिखाया है। पीस पगोडा की दीवारों पर बुद्ध की जिंदगी से जुड़े कई तथ्यों की नक्काशियां भी की हुई हैं।

जैसा की नाम से ज्ञात होता है, पर्यटकों असलियत में यहाँ के सकारात्मक माहौल में एक अनोखी शांति प्राप्त कर सकते हैं। स्मारक के निचली मंजिल पर कंक्रीट से बनी दो सिंहों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मुख्य द्वार से करीब 5-6 मिनट की दूरी पर्यटकों को चलकर तय करनी होती है क्योंकि इस बोद्ध मंदिर परिसर में कोई भी वाहन नहीं लाया जा सकता।

पीस पगोडा का इतिहास

निप्पोनज़न म्योहोजी नामक एक जापानी बौद्ध ने इस स्तूपा का निर्माण सन् 1972 में शुरू करवाया था। इस स्तूपा को बनने में कुल 20 वर्ष लग गए और इसका उद्घाटन सन् 1992 में किया गया। जापानी बौद्ध भिक्षु निचिडट्सू फुजी के नेतृत्व में इस स्तूपा का निर्माण हुआ था।

पीस पगोडा मे क्या देखे –

कहा जाता है कि “निचिडट्सू फुजी” जिन्हें फुजी गुरू के नाम से भी जाना जाता था, भारत के राष्ट्रपिता “महात्मा गांधी” से प्रेरित थे। फुजी गांधी की तरह ही अहिंसा, सत्य, भाईचारे की राह पर चलना चाहते थे। दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर एटम बॉम गिराने पर फुजी बेहद दुखी थे, तब उन्होंने विश्व को शांति, भाईचारे का पाठ पढ़ाने का फैसला किया।

पीस पगोडा सलाह –

यहां पर्यटक सुबह के नौ बजे से शाम के छह बजे तक जा सकते हैं

पीस पगोडा के पास ही स्थित जापानी मंदिर भी देख सकते हैं

पगोडा के शीर्ष से पूरे शहर का मनोरम दृश्य निहार सकते हैं|

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