फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के लिए आखिरी राउंड की वोटिंग शुरू हो गई है। यहां इमैनुएल मैक्रों और मरिन ले पेन के बीच मुकाबला है। नतीजे सोमवार तक आ जाएंगे। 2017 में भी इन दोनों ही उम्मीदवारों के बीच मुकाबला था। उस समय मैक्रों ने मरिन को हराया था और राष्ट्रपति बने थे।

2017 में इमानुअल मैक्रों को फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में 24 प्रतिशत मुसलमानों का समर्थन मिला था, जबकि इस साल यह 14 फीसदी पर आ गया है। रविवार को राष्ट्रपति चुनाव दूसरे और निर्णायक मतदान में यह फैक्टर भी दिखेगा। राष्ट्रपति चुनाव में पिछली बार की तरह इस बार भी उनका मुकाबला मरिन ली पेन से है। मैक्रों और मरिन ली पेन को लेकर मुस्लिमों के बीच स्पष्ट है कि उन्हें अगर इन दोनों में से चुनना है तो बड़ा मुश्किल है।

पिछले चुनाव में मैक्रों का साथ देने वाले मुस्लिम वोटरों में इस बार गहरी नाराजगी है। ऐसे में तीसरे बड़े चेहरे जीन ल्यूक मेलनचोन मुकाबले को रोचक बना सकते हैं। जीन वामपंथी हैं और पहले दौर के चुनाव में 70% मुसलमानों ने इन्हें वोट किया है।

मैक्रों को मिल सकती है बढ़त
एक ओर मैक्रों के रूस विरोधी रुख को फ्रांसीसी जनता का समर्थन मिल रहा है। उन्हें रेस में बढ़त मिलती हुई नजर आ रही है, वहीं मरिन ली पेन के राष्ट्रवादी तेवर फीके पड़ रहे हैं। अगर मैक्रों दूसरी बार जीतकर राष्ट्रपति बनते हैं तो वह ऐसा करने वाले दूसरे राष्ट्रपति होंगे।

दरअसल, मैक्रों रूस-यूक्रेन जंग में खुले तौर पर यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं। साथ ही वे हिजाब और मुस्लिम शरणर्थियों को शरण देने के मामले में भी काफी नरमपंथी आए हैं। उन्होंने इसे फ्रांसीसी मूल्य बताया है। मरिन का टीवी डिबेट में मुस्लिमों के प्रति कट्टर रवैया किसी को पसंद नहीं आ रहा है। पिछले चुनाव के मुकाबले मरिन इस बार मैक्रों को टक्कर देती दिख रही है। इस बार के डिबेट में मरिन शुरू से ही तैयार दिखीं। उन्होंने मैक्रों पर कई आरोप लगाए।

पश्चिमी यूरोप में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश है फ्रांस
इस बार उन्होंने वोटों के अंतर को भी कम किया है। हालांकि, अपनी पार्टी नेशनल रैली को रूसी बैंक से मिले लोन के बाद मरिन घिर गई हैं। मरिन ने चुनाव जीतने पर मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने पर बैन लगाने का वादा किया है। मैक्रों ने इसका विरोध किया। कहा- ऐसा करने पर देश में सिविल वॉर छिड़ जाएगा। पश्चिमी यूरोप में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी फ्रांस में है। इस तरह के फैसले देश को गृहयुद्ध की तरफ धकेल देंगे।

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