रामपुर सेशन कोर्ट अगर आजम खान की तीन साल की सजा पर रोक लगा देती है तो क्या वो फिर से विधानसभा के सदस्य बन जाएंगे जिसे स्पीकर ने रिक्त घोषित कर दिया है और वहां चुनाव की तारीख तय हो गई है।
समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को मिली तीन साल की सजा के खिलाफ उनकी अपील पर रामपुर सेशन कोर्ट गुरुवार को सुनवाई और फैसला करेगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 15 नवंबर को तय इस सुनवाई को 10 नवंबर को करने और उसी दिन फैसला सुनाने को कहा गया है। सेशन कोर्ट में आजम खान के पक्ष में फैसला होता है तो अधिक से अधिक ये हो सकता है कि उनकी सजा पर रोक लगा दी जाए। लेकिन सजा पर स्टे मिलने के बाद भी क्या आजम खान की विधानसभा सदस्यता बहाल हो पाएगी ?
फिलहाल के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर को रामपुर में उपचुनाव के लिए जारी होने वाली अधिसूचना को एक दिन के लिए रोक दिया है। रामपुर सेशन कोर्ट 10 नवंबर को जो फैसला देगा उसके आलोक में चुनाव आयोग 11 नवंबर या उसके बाद नोटिफिकेशन जारी कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को आजम खान की याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी परदीवाला की बेंच ने चुनाव आयोग के वकील से काफी सवाल-जवाब किए। चुनाव आयोग ने ये साफ कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व के आदेश के अनुसार सजा होते ही अयोग्यता का मामला बनता है। कोर्ट ने यह पूछा कि अगर सेशन कोर्ट आजम खान की सजा पर रोक लगा देता है तो क्या अयोग्यता का मामला खत्म हो जाएगा क्योंकि उस एक्शन का आधार सजा है।
इस पर चुनाव आयोग के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सेशन कोर्ट अगर आजम खान की सजा पर रोक लगा भी देती है तो वो अधिक से अधिक इस उप-चुनाव में नामांकन दाखिल कर सकते हैं और चुनाव लड़ सकते हैं।
हिन्दुस्तान ने इस मसले पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी से बात की जिन्होंने कहा कि ये एक नए तरह का मामला है इसलिए इसका रेडीमेड जवाब नहीं दिया जा सकता। कुरैशी ने सवाल किया कि सदस्यता जिस आधार पर खत्म हुई है अगर वो आधार कोर्ट से खत्म हो जाता है तो सदस्यता खत्म करने का फैसला कैसे बना रहेगा।
रामपुर सेशन कोर्ट में गुरुवार को आजम खान की अपील पर सुनवाई और फैसले पर सबकी नजर टिकी होगी। अगर कोर्ट सजा के खिलाफ अपील को खारिज कर देता है तो फिर कोई बात ही नहीं है। लेकिन अगर आजम खान की सजा पर रोक लगती है तो फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है। आजम खान की कोशिश होगी कि इस आधार पर उनकी सदस्यता बहाल कर दी जाए। जबकि चुनाव आयोग की दलील होगी कि सजा पर रोक है तो वो फिर से चुनाव लड़ लें। ये कानूनी लड़ाई रामपुर में खत्म हो जाएगी या वापस दिल्ली आएगी, देखना दिलचस्प होगा।