छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के छिंदवाड़ा गांव में एक ईसाई समुदाय का व्यक्ति अपने पिता का शव दफनाने के लिए कोर्ट का चक्कर काट रहा है। उसने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई और जवाब मांगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर दुख जताते हुए कहा कि यह दुखद है कि एक एक व्यक्ति को अपने पिता के शव को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा। न तो ग्राम पंचायत, जिला प्रशासन और राज्य सरकार बल्कि, हाईकोर्ट भी इस समस्या को हल करने में असफल रहा। इस मामले की सुनवाई अब बुधवार को होगी। दरअसल, बस्तर के दरभा निवासी याचिकाकर्ता रमेश बघेल के पिता की 7 जनवरी को मृत्यु हो गई। उनकी मौत के बाद से याचिकाकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने गांव के आम कब्रिस्तान में ईसाईयों के लिए सुरक्षित जगह पर उनका अंतिम संस्कार करने की तैयारी की थी। लेकिन, इसकी जानकारी होने पर गांव के लोगों ने विरोध कर दिया और तनाव की स्थिति निर्मित हो गई। शासन का जवाब सुनने के बाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी याचिका गांव वालों ने दावा कि किसी ईसाई व्यक्ति को उनके गांव में दफनाया नहीं जा सकता, चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या याचिकाकर्ता की अपनी निजी भूमि। जिसके बाद रमेश बघेल ने अपने पिता का शव अपनी खुद की जमीन पर दफन करने और सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसमें बताया गया कि याचिकाकर्ता ने इसके लिए पहले स्थानीय अधिकारियों के साथ ही सरकार से सुरक्षा और मदद मांगी थी। जहां से मदद नहीं मिलने पर उन्हें हाईकोर्ट आना पड़ा। याचिका में कहा कि छत्तीसगढ़ ग्राम पंचायत नियम, 1999 के प्रावधानों के अनुसार मृत व्यक्ति के धर्म की रीति के अनुसार शवों के अंतित संस्कार के लिए जगह उपलब्ध कराना ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि ग्राम छिंदवाड़ा में ईसाइयों के लिए कोई अलग कब्रिस्तान नहीं है। हालांकि, उन्होंने आश्वासन दिया कि यदि याचिकाकर्ता अपने मृत पिता का अंतिम संस्कार गांव छिंदवाड़ा से 20-25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नजदीकी गांव करकापाल में करता है, जहां ईसाइयों का एक अलग कब्रिस्तान है, तो कोई आपत्ति नहीं होगी। शासन का पक्ष सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दी। पिता का शव दफनाने अनुमति लेने सुप्रीम कोर्ट पहुंचा बेटा हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिलने पर बेटा रमेश बघेल ने अपने एडवोकेट के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिसमें हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। याचिका में बताया गया कि अंतिम संस्कार के अभाव में उसके पिता का शव अब भी अस्पताल में रखा है। इस मामले की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई। जस्टिस बी.वी.नागरत्ना और जस्टिस सत्येश चंद्र शर्मा की बेंच ने आश्चर्य जताया कि मृतक का शव सात जनवरी से जगदलपुर के जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के शवगृह में पड़ा हुआ है। जबकि पुलिस ने इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने जताया दुख इस मामले की सुनवाई के दौरान शासन की तरफ से जवाब दिया गया और बताया कि गांव में ईसाई समुदाय के शव को दफनाने पर विरोध किया जा रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि गांव में ईसाई कब्रिस्तान नहीं है। शासन ने निजी जमीन पर शव दफानने पर भी विरोध जताया और कहा कि ऐसा करना भी प्रतिबंधित है, क्योंकि इससे भूमि की पवित्रता पर सवाल उठाया गया है। शासन का जवाब सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दुख जताते हुए कहा कि एक मृत व्यक्ति की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा गया। जस्टिस बी.वी.नागरत्ना और जस्टिस सत्येश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि यह दुखद है कि एक व्यक्ति को अपने पिता का शव दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा। हमें इस बाता का भी दुख है कि राज्य शासन के साथ ही हाईकोर्ट भी इस समस्या का हल नहीं कर सका। कोर्ट ने सवाल किया कि गांव में रहने वाले व्यक्ति को वहां क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि इतने लंबे समय तक उन ईसाई आदिवासियों के खिलाफ कोई आपत्ति क्यों नहीं उठाई गई जिन्हें दफनाया गया है। वैकल्पिक रूप से उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता को अपने पिता को अपनी निजी भूमि पर दफनाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती।

By

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *