नई दिल्ली| तालिबान की अफगानिस्तान में नई सरकार के गठन की तैयारी तेज़ हो गई है.इस्लाम के लिहाज़ से पवित्र शुक्रवार औपचारिक तौर इसका ऐलान हो जाए. इसके साथ भी भारत और तालिबान के बीच की बातचीत और आगे रिश्ते कैसे होंगे इसे लेकर मंथन भी तेज़ हो गया है. मंगलवार को दोहा में तालिबान बातचीत के लिए भारतीय दूतावास के दरवाज़े पर पहुंच गया. तालिबानी नेता शेर बहादुर अब्बास स्टैनिकज़ई भारत के राजदूत दीपक मित्तल से मिले.
विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि मुलाकात का अनुरोध तालिबान की तरफ से आया था. स्टैनिकज़ई ने अपने काबुल और दिल्ली के संपर्क सूत्र के जरिए भारत को इस बात के लिए मनाने की कोशिश की थी कि भारत काबुल से अपने राजनयिकों को न निकाले. काबुल में भारत के दूतावास और राजनयिकों की सुरक्षा का भरोसा देने की भी कोशिश की थी.
सूत्रों से मिल रहे संकेतों के मुताबिक- भारत से संबंधों को लेकर तालिबान के भीतर सोच में कुछ अंतर है. खासतौर पर हक्कानी गुट अलग तरह से सोच रहा है. हालांकि स्टैनिकज़ई के साथ साथ अनस हक्कानी ने भी कहा है कि तालिबान भारत से अच्छे संबंध चाहता है. सूत्रों के मुताबिक- अनस हक्कानी ने काबुल और दिल्ली के अपने संपर्क सूत्रों से कहा है कि भारत के साथ संबंधों को लेकर तालिबान सरकार के गठन के कुछ हफ़्तों बाद ही बात आगे बढ़ाई जाएगी.
अनस हक्कानी भी तालिबान के कतर ऑफिस के वार्ताकार टीम के सदस्य हैं और तालिबान के प्रभावशाली नेताओं में एक हैं. ये हक्कानी गुट के संस्थापक सिराजुद्दीन हक्कानी के सबसे युवा बेटे और सिराजुद्दीन हक्कानी के भाई हैं. सिराजुद्दीन हक्कानी हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख हैं. हक्कानी नेटवर्क तालिबान का वो धड़ा है जो सीधे तौर पर पाकिस्तान शह और ताकत मिलती रही है. हक्कानी नेटवर्क को आईएसआई का ही एक विस्तार माना जाता है. तालिबान पर इसी गुट के सहारे पाकिस्तान अपनी मज़बूत पकड़ बना कर रखता रहा है.
सूत्र ये भी बताते हैं कि पाकिस्तान चाहता है कि अफग़ानिस्तान में अपना वजूद बनाए रखने के लिए भारत रावलपिंडी का दरवाज़ा खटखटाए, हालांकि तालिबान अपने बेहतर और एक स्वतंत्र भविष्य के लिए पाकिस्तान की बैकसीट ड्राइविंग से पीछा छुड़ाना चाहेगा. भारत, जिसने तालिबान को हमेशा आतंकी समूह माना और उसकी पिछली सरकार को कभी मान्यता नहीं दी, के साथ तालिबान के संबंध अकेला भारत के फायदे के लिए तो होने वाला नहीं, तालिबान को भी इसमें बड़ा फ़ायदा नज़र आ रहा है, लेकिन कुल मिला कर भारत और तालिबान के बीच की बातचीत को अभी कई इम्तिहानों से गुज़रना है.