सोमनाथ मंदिर पर 725 ईसवी से 18वीं सदी तक बार-बार हमले हुए। कई राजाओं ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। जानिए इस मंदिर की अब तक की यात्रा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर के लिए कई अलग-अलग परियोजनाओं का वर्चुअल तौर पर उद्घाटन किया। पीएम ने इस दौरान कहा कि यह स्थान आज भी पूरे विश्व के सामने यह आह्वान कर रहा है कि सत्य को असत्य से हराया नहीं जा सकता। आस्था को आतंक से कुचला नहीं जा सकता। मोदी के सोमनाथ के इतिहास पर दिए गए भाषण को अफगानिस्तान के ताजा हालात पर टिप्पणी के तौर पर भी देखा जा रहा है, जहां तालिबान अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक प्रतीकों को खत्म करने में जुटा है। ऐसे में यह जानना अहम है कि कैसे हजारों सालों में अक्रांताओं के हमले, मंदिर को कई बार तोड़े और गिराए जाने के बावजूद यह मंदिर आज भी भारत के अहम ऐतिहासिल स्थलों में शामिल है।

हिंदू ग्रंथो में क्या है सोमनाथ मंदिर का इतिहास?
हिंदुओं का पवित्र स्थल सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिगों में से पहला माना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर का जिक्र ऋगवेद में मिलता है।

सतयुग: हिंदू ग्रंथों के प्राचीन लेखों के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण सतयुग में राजा चंद्रदेव सोमराज ने करवाया था। तब इस मंदिर को पूरी तरह सोने से तैयार किया गया था।

त्रेतायुग-द्वापरयुग: इस मंदिर को त्रेतायुग में रावण ने चांदी से बनवाया। इसके बाद आया द्वापरयुग जिसमें इस मंदिर का पुनर्निर्माण श्रीकृष्ण ने लकड़ी से करवाया।

कलियुग: अक्रांताओं के आक्रमण से पहले इस मंदिर को पत्थर की कारीगरी से भीमदेव सोलंकी ने बनवाया। पुरातन खोजों से अब तक यह बात सामने आई है कि साल 1026 में महमूद गजनवी के इस मंदिर पर हमले से पहले इसे तीन बार पुनर्निर्मित करवाया गया था। बाद में इस पर दिल्ली सल्तनत से लेकर मुगलकाल तक करीब 17 हमले हुए।

इतिहास की किताबों में क्या है मंदिर का जिक्र?
इतिहास की किताबों की मानें तो सोमनाथ मंदिर आदिकाल से ही त्रिवेणी संगम (तीन नदियों- कपिला, हिरण और सरस्वती का संगम) होने की वजह से हिंदुओं का लोकप्रिय तीर्थस्थल था।

649 ईस्वी: अमेरिकी धार्मिक इतिहासकार जे गॉर्डन मेल्टन ने मंदिर के इतिहास से जुड़ी जो जानकारी इकट्ठा की, उसके तहत इस मंदिर का निर्माण प्राचीन समय में किसी अज्ञात समय में हुआ, जबकि मुख्य मंदिर के पास बना एक दूसरा मंदिर यादव राजा वल्लाभी ने 649 ईस्वी में बनवाया।

725 ईस्वी: सिंध क्षेत्र के अरब शासक अल-जुनायद ने गुजरात और राजस्थान पर आक्रमण के दौरान राजा वल्लाभी के बनवाए मंदिर को गिराया।

1026: बताया जाता है कि अरब यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतान्त में सोमनाथ मंदिर का विवरण लिखा था। इससे प्रभावित हो महमूद गजनवी ने सन 1024 में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। माना जाता है कि गजनवी ने उस दौर में 2 करोड़ दिनार (करीब 500 करोड़ रुपए) के बराबर संपत्ति लूटी थी। इस दौरान इस्लामिक देशों में यह हलचल भी थी कि महमूद गजनवी ने मंदिर पर हमले के दौरान करीब 50 हजार भक्तों को मार गिराया था।

1026-1042: महमूद गजनवी के लौटने के बाद गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।

1299:  सन 1297 में जब अलाउद्दीन खिलजी की दिल्ली सल्तनत की सेना ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे फिर तबाह किया गया। इस मंदिर में फिर लूटपाट हुई और अगले कुछ सालों तक यही सिलसिला जारी रहा।

1394: दिल्ली सल्तनत के इस मंदिर पर आक्रमण के बाद मंदिर को फिर से सौराष्ट्र के हिंदू राजा महिपाल-I ने बनवा दिया। फिर तीसरी बार 1394 में दिल्ली सल्तनत के मुजफ्फर शाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाया और सारा चढ़ावा लूट लिया। शाह के गुजरात का सुल्तान बनने के बाद यह मंदिर लंबे समय तक क्षतिग्रस्त हालात में रहा। इस बीच मंदिर को बीच-बीच में कई बार तोड़ा गया और हिंदू राजाओं ने इसका पुनर्निर्माण कराना जारी रखा।

1665-1706: मुगल शासन में मंदिर में कई बार तोड़फोड़ की गई। हालांकि, सोमनाथ मंदिर की इमारत में जो बड़ी तबाही की गई, वो 1665 से लेकर 1706 के बीच क्रूर शासक औरंगजेब के समय में हुई। दरअसल, 1665 में जब इस मंदिर को तोड़ने के बाद भी भक्तों का यहां आना कम नहीं हुआ, तो औरंगजेब ने सैन्य टुकड़ी भेजी और बड़ी संख्या में लोगों को मरवा दिया। बताया जाता है कि इसके बाद 18वीं सदी के अंत तक यह मंदिर क्षतिग्रस्त स्थिति में रहा।

1780- : इतिहास की किताबों में जो जानकारी मिलती है, उसके मुताबिक इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर ने औरंगजेब के शासन में तबाह किए गए ज्योतिर्लिंगों वाले कई मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया। इनमें उत्तर प्रदेश में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर, महाराष्ट्र के घुश्मेश्वर मंदिर प्रमुख रहे। बताया जाता है कि जब रानी अहिल्याबाई सोमनाथ मंदिर का निर्माण कराने पहुंचीं, तो इस पर हमले की आशंका के चलते उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं कराया, बल्कि इससे कुछ दूरी पर ही एक अलग मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि ऐसा करने के पीछे उनका मकसद ध्वस्त मंदिर को आगे की जाने वाली टूट-फूट से बचाना था, ताकि लोगों का इस पर ध्यान ही न जाए।

1947: भारत पर अंग्रेजों के तकरीबन 200 सालों के राज के दौरान सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण पर किसी का ध्यान नहीं गया। हालांकि, 13 नवंबर 1947 को भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने तबाह हुए सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की शपथ ली। इस मंदिर के निर्माण के लिए तब आर्किटेक्ट प्रभाशंकर सोमपुरा को बुलाया गया और मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से 28 किमी दूर चोरवाड से चूनापत्थर मंगाए गए। इस मंदिर को ‘नगर’ शैली में तराशा गया।

1950: मौजूदा समय में जो मंदिर है, उसका शिलान्यास 11 मई 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने किया था। बताया जाता है कि पहले इस मंदिर के निर्माण और फिर शिलान्यास को लेकर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का सरदार पटेल और तत्कालीन कैबिनेट मंत्री केएम मुंशी से विवाद रहा। जहां पटेल और नेहरु के बीच इस मुद्दे पर तनाव का कोई पुख्ता रिकॉर्ड नहीं है, वहीं केएम मुंशी और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के मंदिर के अनावरण समारोह में जाने को लेकर नेहरु की आपत्ति के कई लिखित रिकॉर्ड मौजूद हैं।

केएम मुंशी ने अपनी एक किताब में इस विवाद का जिक्र करते हुए कहा था, “दिसंबर, 1922 में मैं एक टूटे तीर्थस्थल के दौरे पर गया। तबाह और जला हुआ। लेकिन मजबूती के साथ खड़ा।” मुंशी के मुताबिक, अक्टूबर 1947 में जब जूनागढ़ पर भारत का कब्जा हुआ, तब सरदार पटेल ने उनसे कहा था- ‘जय सोमनाथ’। इसके बाद पटेल ने मुंशी की देखरेख में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण शुरू कराया।

मुंशी के मुताबिक, सोमनाथ का पुनर्निर्माण देश से किया गया एक वादा था। हालांकि, जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें बुलाकर कहा कि उन्हें सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की कोशिश बिल्कुल पसंद नहीं है। यह एक तरह से हिंदू पुनर्जागरण की कोशिश है। माना जाता है कि नेहरु मंदिर के खिलाफ नहीं थे, लेकिन उनके धर्मनिरपेक्षता के विचार में मंदिर का निर्माण उस वक्त अनुचित था।

1951: रिकॉर्ड्स के मुताबिक, 1951 में जब राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद मंदिर का अनावरण करने जा रहे थे, तब नेहरु ने उन्हें ऐसा करने से रोका, लेकिन राजेंद्र प्रसाद ने नेहरु की सलाह को अनसुना कर दिया और मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए। इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब के मुताबिक, 2 मई 1951 को जवाहरलाल नेहरु ने इस कार्यक्रम का विरोध करते हुए मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी थी और कहा था कि भारत सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि, राजेंद्र प्रसाद ने जवाहलाल नेहरु को भेजी चिट्ठी में कहा था- “मुझे अपने धर्म पर पूरा भरोसा है और मैं खुद को इससे अलग नहीं कर सकता।” आखिरकार 11 मई 1951 को राष्ट्रपति ने पुनर्निर्मित सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन किया।

 

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