शिंदे कैंप में शिवसेना के 40 विधायक हैं और अन्य छोटे दलों और निर्दलीय के लगभग 10 विधायक हैं। इनमें से कई विधायकों को शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की कैबिनेट में जगह मिलने की उम्मीद है।

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को अभी भी सबकुछ ठीक होने की उम्मीद है। उन्हें ऐसा लगता है कि एकनाथ शिंदे सरकार के आगामी कैबिनेट विस्तार के बाद जो बागी विधायक मंत्री पद से चूक जाएंगे वे ठाकरे के पास वापस आ जाएंगे। शिंदे कैंप में शिवसेना के 40 विधायक हैं और अन्य छोटे दलों और निर्दलीय के लगभग 10 विधायक हैं। इनमें से कई विधायकों को उम्मीद है कि उन्हें एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की कैबिनेट में जगह मिलेगी।

उद्धव गुट वाली शिवसेना ने दावा करते हुए कहा, “आप देखेंगे कि शिंदे गुट और भाजपा के बीच जल्द ही लड़ाई हो रही है। उन्होंने (शिंदे-भाजपा) सभी को (शिंदे-भाजपा के बागी विधायकों के बीच) मंत्री बनाने का वादा किया है और इसलिए यह एक समस्या होने जा रही है।” सांसद विनायक राउत ने शुक्रवार को यह बात कही। उन्होंने कहा, ‘अगर उन्हें (बागी विधायकों को) कोई बर्थ नहीं मिली तो वे उद्धव के पास आ जएंगे।’

राउत के दावे से पता चलता है कि शिवसेना कैबिनेट विस्तार को कितनी उत्सुकता से देख रही है। शिवसेना और एनसीपी नेतृत्व का भी मानना ​​है कि भाजपा-शिंदे समूह ने जानबूझकर 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव के बाद कैबिनेट विस्तार की योजना बनाई है, क्योंकि उन्हें डर है कि जिन्हें मंत्री पद नहीं मिलेगा वे विधायक राष्ट्रपति चुनाव के दौरान अपना गुस्सा दिखा सकते हैं।

शिंदे-भाजपा समूह इस बात से अवगत है कि शिवसेना के कई बागी और निर्दलीय विधायक मंत्री बनने के इच्छुक हैं। यही वजह है कि भाजपा हलकों में चर्चा है कि पहला कैबिनेट विस्तार एक छोटे स्तर पर हो हो सकता है। इसमें केवल नौ से 11 मंत्रियों को शामिल किया जाएगा। ऐसा इसलिए किया जाएगा ताकि जिन लोगों को कोई मंत्रालय नहीं मिला है, उन्हें अगले दौर में मंत्री बनने की उम्मीद बनी रहे।

शिंदे ने शुक्रवार को शिवसेना की इन टिप्पणियों का जवाब देते हुए कहा कि उनकी सरकार स्थिर है और 2.5 साल का कार्यकाल पूरा करेगी। उन्होंने कहा, “किसी को भी जबरन नहीं लाया गया है। आठ मंत्री पिछली सरकार छोड़कर हमारे पास आए हैं। ये विधायक किसी उम्मीद के साथ मेरे साथ नहीं जुड़े हैं।”

इस बीच, ठाकरे खेमे ने शुक्रवार को राज्य सरकार पर औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम क्रमशः संभाजी नगर और धाराशिव करने के लिए तत्कालीन महा विकास अघाड़ी सरकार द्वारा लिए गए निर्णय को रोकने का आरोप लगाया।

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