‘सम्राट पृथ्वीराज’ आखिरकार सिनेमाघरों में आ ही गई। हिंदी सिनेमा का क्रेज दुनिया भर में कैसा है, इसकी गवाही यहां अबू धाबी के उस सिनेमाघर में मिली जहां ‘सम्राट पृथ्वीराज’ को देखने अच्छे खासे लोग जुटे। इन लोगों में किसी ऐतिहासिक फिल्म या अक्षय कुमार की फिल्म या यशराज फिल्म्स की फिल्म देखने से ज्यादा क्रेज रहा एक नई फिल्म देखने का। आम सिनेमा प्रेमी के लिए शुक्रवार के यही मायने हैं। उसके लिए हर शुक्रवार एक नई आशा, एक नई उम्मीद लेकर आता है। उम्मीद रहती है कि कभी तो हिंदी सिनेमा अपने सितारों के आभामंडल से बाहर निकलेगा। कहानियों पर ढंग से काम करेगा। कैमरे के सामने ठीक से अभिनय न कर पाने पर सुपर सितारों को टोकेगा लेकिन नहीं, यहां फिल्में अब भी सिर्फ इसलिए बनती हैं कि अक्षय कुमार ने किसी फिल्म के लिए हां कर दी है। एक कहानी, उस कहानी के लिए हां करने वाला एक सितारा और एक ऐसा व्यक्ति जो इन दोनों को साथ ला सके, हिंदी सिनेमा में किसी भी तरह की फिल्म बना सकता है। ‘सम्राट पृथ्वीराज’ ऐसी ही एक फिल्म है। बॉक्स ऑफिस पर ‘बेल बॉटम’ और ‘बच्चन पांडे’ के बाद अक्षय की साख का इम्तिहान लेती एक और फिल्म।

आदि और अंत में उलझी कहानी
फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ की कहानी पूरी फिल्म है। चंदबरदाई के लिखे महाकाव्य ‘पृथ्वीराज रासो’ से अलग। ‘पृथ्वीराज रासो’ के बारे में कहा जाता है कि इसे चंदबरदाई ने वहीं तक लिखा जहां तक इसमें पृथ्वीराज चौहान का यश गान है इसके बाद का हिस्सा उनके परिजनों ने पूरा किया। और, इस अंत के बारे में ही इसके लेखक, निर्देशक डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने पूरी छूट ली है। अक्षय कुमार ने फिल्म की रिलीज से एक दिन पहले अपील की कि इसे देखने वाले फिल्म की अहम बातें लीक न करें ताकि दूसरों का ये फिल्म देखने का मजा किरकिरा ना हो। लेकिन, फिल्म की शुरुआत और अंत में जो कुछ है, वह चंदबरदाई के लिखे से मेल नहीं खाता। कहानी शुरू होती है पृथ्वीराज को बंदी के रूप में दिखाने से। उसके सामने मौका है अपनी जान बचाने का, अगर वह मोहम्मद गोरी के सामने सिर झुका दे। इस मौके का पूरा फिल्मी उपयोग होता है। पृथ्वीराज की जय जयकार करने का दर्शकों को मौका भी मिलता है लेकिन उससे पहले ही फिल्म की कहानी अतीत में चली जाती है।

अक्षय कुमार बने कमजोर कड़ी
पृथ्वीराज चौहान के बारे में जनश्रुति है कि वह 11 साल में अजमेर के राजा बने और जवानी में ही शहीद हो गए। अक्षय कुमार को इस युवा राजा के रूप में लेना ही फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है। शुद्ध हिंदी बोलना उनके लिए चुनौती रही है। अनुस्वार का उच्चारण उनसे होता नहीं है। एक राजा की आन, बान और शान के हिसाब से वह अपनी चाल ढाल तो बदलते हैं लेकिन उनकी संवाद अदायगी उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है। कोरोना संक्रमण काल में ‘मसीहा’ का तमगा पाने वाले सोनू सूद को ऐसे किरदारों में देखकर उनके प्रशंसकों को अच्छा नहीं लगेगा। संजय दत्त ने अपनी पिछली फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ में जो कमाया था, वह सब यहां गवाया है। मानव विज और आशुतोष राणा अपनी तरफ से पूरी मेहनत करते हैं लेकिन उनसे हिंदी सिनेमा के दर्शकों को उम्मीदें और ज्यादा रहती हैं। फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ से बड़े परदे पर अपनी बोहनी कर रहीं विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर के लिए भी इस फिल्म ने आगे की राह मुश्किल कर दी है।

रिंग मास्टर बनने से चूके चंद्र प्रकाश
अक्षय कुमार और मानुषी छिल्लर के अलावा फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ की तीसरी कमजोर कड़ी इसका लेखन और निर्देशन है। चंद्र प्रकाश द्विवेदी का कहना रहा है कि इस फिल्म पर उन्होंने 15 साल रिसर्च की है। लेकिन, यह मेहनत वह परदे पर उतार नहीं पाए हैं। उनकी फिल्मी कल्पनाओं से पानी पाती इसकी कहानी को इसकी पटकथा कमजोर कर देती है। और, अक्षय कुमार से वह ‘सम्राट पृथ्वीराज’ जैसा अभिनय भी नहीं करा पाए। यहां ये बात भी जाहिर होती है कि हिंदी फिल्मों के सुपर सितारों को निर्देशित कर पाना आसान काम नहीं है। फिल्म में अक्षय कुमार के दृश्यों को निर्देशित करने में काम चलाऊ तरीके से काम लिया गया, और यही फिल्म के लिए नुकसानदेह साबित हुआ है।

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