भाजपा नेतृत्व के लिए दिल्ली दुखती रग साबित हुआ है। देश के 18 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में उसकी सरकारें हैं और दो बार लगातार पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सत्तारूढ़ होकर उसने इतिहास रचा है। उसने जोड़तोड़ कर उन राज्यों में भी अपनी सरकार बनवाने में कामयाबी पाई है जहां चुनावों में उसे जीत हासिल हुई थी।

आज घोषित हुए उपचुनाव परिणामों में भाजपा ने यूपी की आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा को जीतकर बड़ी सफलता हासिल की है, जबकि संगरूर लोकसभा हारने के कारण आम आदमी पार्टी को पंजाब में करारी हार का सामना करना पड़ा है। लेकिन दिल्ली की राजिंदर नगर विधानसभा में आम आदमी पार्टी के दुर्गेश पाठक को मिली जीत ने यह साबित कर दिया है कि भाजपा अभी भी केजरीवाल का विकल्प नहीं खोज पाई है, लेकिन उपचुनाव के परिणाम बताते हैं कि यदि भाजपा अपने हारे हुए उम्मीदवार की ही बात सुन ले तो उसके लिए दिल्ली में जीत के दरवाजे खुले सकते हैं।

दरअसल, भाजपा नेतृत्व के लिए दिल्ली दुखती रग साबित हुआ है। देश के 18 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में उसकी सरकारें हैं और दो बार लगातार पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सत्तारूढ़ होकर उसने इतिहास रचा है। उसने जोड़तोड़ कर उन राज्यों में भी अपनी सरकार बनवाने में कामयाबी पाई है जहां चुनावों में उसे जीत हासिल हुई थी। लेकिन दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भाजपा के करिश्माई नेतृत्व का कोई असर नहीं दिखा है। भाजपा यहां पूरी कोशिश के बाद भी सफल नहीं हो पाई है।

हालांकि, यह भी सही है कि भाजपा ने लोकसभा चुनावों के दौरान अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी लगातार सभी सातों सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही है, लेकिन जैसे ही विधानसभा चुनावों का मामला आता है, मतदाताओं की प्राथमिकता केजरीवाल के साथ हो जाती है। माना यहां तक जा रहा है कि 15 सालों से स्थानीय प्रशासन पर काबिज भाजपा को निगम चुनाव में भी अपनी लुटिया डूबती नजर आ रही है, इसीलिए तीनों निगमों के एकीकरण के बहाने चुनाव टालने की कोशिश की जा रही है।

कैसे निकलेगी जीत की राह?
बीजेपी के लिए दिल्ली में जीत की राह कैसे निकल सकती है, इसके पहले यह समझना जरूरी है कि विधानसभा चुनावों में मतदाताओं से उसकी नाराजगी के क्या कारण हैं। दिल्ली के जानकार मानते हैं कि निगम में भाजपा पार्षद भ्रष्टाचार करते हैं जिसका नुकसान पार्टी को विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ता है। लोकसभा चुनावों में मतदाता की प्राथमिकता राष्ट्रीय मुद्दों की हो जाती है जिसके कारण भाजपा को जीत मिल जाती है, लेकिन यदि भाजपा नेतृत्व इसी उपचुनाव के परिणामों का सही से मूल्यांकन करे तो भविष्य में उसकी जीत की राह खुल सकती है।

दरअसल, भाजपा उम्मीदवार राजेश भाटिया 2012 से 2017 में राजिंदर नगर के ही एक वार्ड से पार्षद रहे हैं। इस चुनाव में वे अपने वार्ड के सभी बूथों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे हैं। इसका श्रेय उनकी ईमानदार छवि और जनता के बीच उनके सौम्य व्यवहार को दिया जाता है। जनता में उनकी अच्छी छवि का ही परिणाम हुआ है कि केजरीवाल की जबरदस्त लोकप्रियता के बाद भी आम आदमी पार्टी इस क्षेत्र में बढ़त हासिल करने में असफल रही। यदि भाजपा अपने अन्य पार्षदों, स्थानीय नेताओं को इसी तरह जनता के हितों के लिए काम करने के लिए प्रेरित कर सके तो उसके लिए जीत की राह आसान हो सकती है।

जनता के लिए योजनाएं
अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के स्थानीय लोगों के लिए बेहतर कार्य करने की कोशिश की है। स्कूलों, स्वास्थ्य में बेहतर काम हुए हैं। बिजली-पानी और परिवहन में लोगों को छूट मिली है। यदि भाजपा को केजरीवाल की राजनीति की काट खोजनी है तो उसे इन लोकप्रिय उपायों को आजमाना पड़ेगा।किसको कितने वोट?
दिल्ली के राजिंदर नगर विधानसभा उपचुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार दुर्गेश पाठक को 40,319 (या 55.78%) वोट मिले हैं। बीजेपी उम्मीदवार राजेश भाटिया को 28,851 (या 39.91%) मिले। कांग्रेस उम्मीदवार प्रेमलता को 2014 वोट (या 2.79%) मिले हैं।

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