छत्तीसगढ़ में गोधन न्याय योजना से जुड़कर शहरी क्षेत्र की झुग्गी बस्तियों में रहने वाली महिलाएं भी लाभान्वित हो रही हैं। गौठानों में जहां गोबर खरीदी-बिक्री के माध्यम से इससे जुड़ी महिला समूहों को अब न सिर्फ नियमित रूप से रोजगार मिल रहा है, अपितु उन्हें बेहतर आमदनी भी हो रही है। रोजगार मिलने और आमदनी बढ़ने से गरीबी में जीवनयापन करने वाली झुग्गी इलाकों में रहने वाली महिलाओं के चेहरे में जहां मुस्कान है, वहीं अधिकांश महिलाएं खुद को आर्थिक रूप से मजबूत मानने लगी है।
रायपुर जिले की कान्हा स्व सहायता समूह की महिलाएं योजना के प्रारंभ होने के साथ ही गोधन न्याय योजनांतर्गत खरीदे गये गोबर से वर्मी खाद तैयार करने का कार्य कर रही हैं। गोकुलनगर में खरीदी केंद्र के माध्यम से 2 रूपये प्रति किलो की दर से गोबर खरीदी तथा उससे वर्मी और सुपर कम्पोस्ट तैयार कर 10 व 6 रुपए प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है। महिलाओं के कुशल प्रबंधन तथा व्यावसायिक दृष्टिकोण के परिणाम स्वरूप कान्हा समूह की महिलाओं ने 54 टन क्विंटल खाद तैयार कर विक्रय किया है, जिससे उन्हें 5 लाख से अधिक की राशि प्राप्त हुई है। कान्हा समूह में कार्यरत 15 महिलाएं गोधन न्याय योजना से जुड़कर आर्थिक उन्नति के नये सोपान गढ़ रही हैं।
समूह की अध्यक्ष श्रीमती सीमा सिंह ने बताया कि जीवनशैली में विविध कार्यों में गोबर का उपयोग होता आ रहा है, लेकिन गोधन न्याय योजना के माध्यम से शासन ने इसके व्यावसायिक महत्व से अवगत कराया और पशुपालकों की आय बढ़ाई तथा महिलाओं के लिए रोजगार सृजित कर उन्हें लाभान्वित किया। उन्होंने बताया कि समूह की 13 महिलाओं को स्थाई रोजगार का साधन उपलब्ध हो पाया तथा उन्हें आजीविका के लिए अन्यत्र जाने की जरूरत नहीं पड़ी। यहां वर्मी खाद तैयार करने के साथ-साथ समूह की महिलाएं सुपर कम्पोस्ट बनाने का कार्य भी कर रही हैं। निगम के अधिकारी और प्रशासन के सतत् सहयोग ने हमें इस रोजगार से जोड़े रखा और इसी का ही परिणाम है कि खाद बेचकर हमें 5 लाख से अधिक की राशि प्राप्त है। अध्यक्ष श्रीमती सीमा सिंह ने बताया कि उनके केंद्र में 140 गौ पालक पंजीकृत है। एक दिन में लगभग 15 हजार किलो गोबर की खरीदी केंद्र में होती है। समूह की सदस्य वर्मी खाद के साथ गौ-काष्ठ, दीया, सजावटी सामान और कण्डे बनाने का कार्य भी करती है। इससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी होती है। समूह की सचिव श्रीमती चित्ररेखा ठाकुर सहित अन्य सदस्यों ने बताया कि खाद निर्माण कार्य से जुड़ने पर उन्हें रोजगार मिलने से घर की आर्थिक दिक्कतें कम हुई हैं तथा वे परिवार के भरण-पोषण में अपना योगदान दें पा रही हैं।