स्वदेशी की ताकत से शुरू हुआ स्वरोजगार का सफर

देशभर में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए चल रह प्रयासों के साथ कदम मिलते हुए छत्तीसगढ़ ने परंपरागत दृष्टिकोण से हटकर एक नयी दृष्टि से काम किया है, जिसमें महिलाओं को प्रकृति द्वारा प्रदत्त रचनात्मक क्षमता के उन्नयन के साथ-साथ उनकी सृजन-शक्ति को स्थानीय संसाधनों के साथ जोड़ा गया है। महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के अंतरसंबंधों पर आधारित यह दृष्टिकोण उनके आर्थिक सशक्तिकरण के लिए नये क्षेत्रों के अनुसंधान पर जोर देता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इस ओर कदम बढ़ाते हुए सुराजी गांव योजना के तहत गौठानों में महिलाओं के स्वावलंबन की नई राहें तैयार की वहीं वनांचल आदिवासी क्षेत्रों में वनोपज संग्रहण और उसके प्रसंस्करण से महिलाओं को जोड़ा है। इसका परिणाम है कि गौठानों में राज्य के 11,187 स्व-सहायता समूहों की 83,874 महिलाओं को रोजगार मिला है। लघु वनोपज के संग्रहण से लगभग 4 लाख 50 हजार महिला समूह जुड़ी हैं। इससे आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक आजादी के साथ समाज में एक नई पहचान भी मिली है।

राज्य के कुल उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाते हुए उत्पादों के लिए नये बाजारों की तलाश करना, और बाजार में पहले से मौजूद संभावनाओं का विस्तार करना रणनीति का अहम हिस्सा रहा है, इसी के अंतर्गत बाजार में उपलब्ध विदेशी अथवा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों के मूल्य और गुणवत्ता से प्रतिस्पर्धा कर सकने में सक्षम स्थानीय उत्पादों का उत्पादन ग्रामीण स्तर पर महिला स्व सहायता समूहों के माध्यम से किया जा रहा है। उत्पादों की ब्रांडिंग से लेकर मार्केटिंग तक की पूरी प्रक्रिया में राज्य शासन सहयोगी है। यह दृष्टिकोण महिला सशक्तिकरण के लिए महात्मागांधी के खादी और स्वदेशी के विचारों से ताकत लेता है।

असल भारत गांवों में बसता है, इसे ध्यान मंे रखते हुए महात्मा गांधी ने ग्रामीण व्यवस्था और लोगों को सुदृढ़ बनाकर सुराजी गांव की परिकल्पना की थी। गांधी जी के इसी सपने को साकार करने छत्तीसगढ़ में सुराजी गांव योजना की शुरूआत की गई। इसके तहत नरवा, गरवा, घुरवा, बारी जैसे संसाधनों के पुनर्जीवन के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था का नया अध्याय शुरू हुआ।

 

पशुधन सहेजने 08 हजार से भी अधिक गौठान बनाए गए। इन स्थलों को राज्य सरकार ने न केवल पशुपालन की आधुनिक विधियों से जोड़ा, बल्कि वहां कृषि तथा पशुपालन से संबंधित आजीविका मूलक गतिविधियां भी शुरू की। रोजगार का नया साधन गांव में ही मिल जाने से इससे बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएं जुड़ी। राज्य की 11 हजार 187 स्व सहायता समूहों की 83 हजार 874 महिलाओं को इससे रोजगार मिला है तथा उनकी आय के नये स्रोत विकसित हुए हैं।

आज गोबर और गौमूत्र की खरीदी कर जैविक खाद तथा कीटनाशकों के निर्माण से लेकर बिजली उत्पादन, प्राकृतिक पेंट, गुलाल, पूजन सामग्री आदि का निर्माण महिलाएं कर रही हैं। गौठानों को ग्रामीण औद्योगिक पार्कों के रूप में विकसित करते हुए वहां दाल मिल, तेल मिल, आटा मिल, मिनी राइस मिल जैसी प्रसंस्करण इकाइयां भी स्थापित की जा रही हैं। राज्य सरकार ने समूहों द्वारा नई आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिए महिला कोष से संबंधित महिला समूहों के 12.77 करोड़ रूपए के ऋण माफ करने के साथ ही ऋण लेने की सीमा को भी दो से चार गुना तक बढ़ा दिया है। इन औद्योगिक पार्कों में उत्पादित वस्तुओं के विक्रय के लिए सभी जिलों में सी-मार्ट की स्थापना की गई है। इसके अलावा इन्हें ऑन लाइन और ऑफ लाइन प्लेटफार्मों पर भी बेचा जा रहा है। सच कहे तो स्वदेशी की ताकत से छत्तीसगढ़ के गांवों में स्वरोजगार का नया युग शुरू हो गया है।

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