मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से मिले संसाधन और परस्पर सहकार की भावना ने दंतेवाड़ा के आठ किसानों की जिंदगी बदल दी है। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से लगे गीदम विकासखंड के कारली के आठ आदिवासी किसानों ने मिलकर करीब दस हेक्टेयर में मनरेगा के माध्यम से आम के एक हजार पौधे लगाए थे। दस साल पहले रोपे गए ये पौधे अब 10 से 12 फीट के हरे-भरे फलदार पेड़ बन चुके हैं। पिछले छह वर्षों से ये किसान आम के पेड़ों के बीच अंतरवर्ती फसल के रूप में सब्जियों, दलहन-तिलहन एवं धान की उपज भी ले रहे हैं। आम की पैदावार के साथ अंतरवर्ती खेती से उन्हें सालाना चार-पांच लाख रुपयों की अतिरिक्त कमाई हो रही है। ये किसान अब अपने इलाके में आम की खेती करने वाले कृषक के रूप में भी जाने-पहचाने लगे हैं।

दंतेवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र और कारली के आदिवासी किसान श्री राजूराम कश्यप आम से खास बनने की इस कहानी के नायक हैं। श्री कश्यप के खेत की सीमा से गांव के ही श्री छन्नू, श्री दसरी, श्री अर्जुल, श्री झुमरलाल, श्री पाली, श्री सुन्दरलाल और श्री पाओ की कृषि भूमि लगती है। इन आठों किसानों की कुल 16 हेक्टेयर जमीन में से दस हेक्टेयर सिंचाई के साधनों के अभाव में वर्षों से बंजर पड़ी थी। श्री राजूराम कश्यप की सबसे ज्यादा दो हेक्टेयर जमीन अनुपयोगी पड़ी थी। अपनी और साथी किसानों की इस समस्या को लेकर उन्होंने दंतेवाड़ा के कृषि विज्ञान केन्द्र में संपर्क किया। वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने साथी किसानों से चर्चा कर खाली पड़ी जमीन पर फलदार पौधे लगाने की योजना पर काम शुरू किया।

 

किसानों की सहमति मिलने के बाद कृषि विज्ञान केन्द्र ने वर्ष 2011-12 में मनरेगा के अंतर्गत नौ लाख 56 हजार रुपए मंजूर कर 25 एकड़ बंजर भूमि को फलोद्यान के रूप में विकसित करने का काम शुरू किया। वैज्ञानिक पद्धति से वहां एक हजार आम के पौधे रोपे गए, जिनमें 500 दशहरी और 500 बैगनफली प्रजाति के थे। प्रत्येक पौधों के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई, ताकि उनकी वृद्धि अच्छे से हो सके। समय-समय पर खाद का छिड़काव भी किया गया। परियोजना की सफलता के लिए यह जरूरी था कि फलोद्यान के संपूर्ण प्रक्षेत्र को सुरक्षित रखा जाए। इसके लिए 13वें वित्त आयोग की राशि के अभिसरण से 12 लाख 58 हजार रूपए की लागत से तार फेंसिग की गई एवं सिंचाई के लिए दो ट्यूबवेल भी खोदे गए। प्रक्षेत्र के बड़े आकार को देखते हुए सिंचाई के साधनों की उपलब्धता एवं भू-जल स्तर बनाए रखने के लिए मनरेगा से आठ लाख 64 हजार रूपए की लागत से पांच कुंओं का भी निर्माण किया गया।

फलोद्यान के शुरूआती तीन सालों में पौधरोपण एवं संधारण के काम में भू-स्वामी आठ किसानों के साथ ही गांव के 45 अन्य परिवारों को भी सीधा रोजगार मिला। इस दौरान 3072 मानव दिवसों का रोजगार सृजन कर पांच लाख आठ हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। दस साल पहले रोपे गए इन पौधों से अब हर साल चार हजार किलोग्राम आम का उत्पादन हो रहा है। इनकी बिक्री से किसानों को सालाना दो लाख रूपए की आय हो रही है।

कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नारायण साहू बताते हैं कि इस परियोजना में शामिल आठों किसानों को आम के उत्पादन और अंतरवर्ती खेती के बारे में गहन प्रशिक्षण दिया गया है। इनकी मेहनत व लगन तथा कृषि विज्ञान केन्द्र के सुझावों को गंभीरता से अमल में लाने के कारण अच्छी पैदावार और अच्छी कमाई हो रही है। वे बताते हैं कि वृक्षारोपण के दौरान प्रत्येक पौधे के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई थी, जिनके बीच इन्हें अंतरवर्ती फसलों की खेती का भी प्रशिक्षण दिया गया था। अभी ये किसान बगीचे में सात हेक्टेयर में धान तथा एक हेक्टेयर में दलहन, एक हेक्टेयर में तिलहन और एक हेक्टेयर में सब्जियों की पैदावार ले रहे हैं। अंतरवर्ती फसलों से वे हर साल दो लाख रूपए की अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं।

 

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