किसानों एवं पशुपालकों को आर्थिक लाभ पहंचाने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संचालित गोधन न्याय योजना ग्रामीण महिलाओं की आत्मनिर्भरता का सशक्त माध्यम बन गया है। गौठानों से जुड़कर स्व सहायता समूह की महिलाएं अपना भविष्य संवार रहीं है।गोधन न्याय योजना के अंतर्गत स्व सहायता समूह की महिलाएं पूर्ण तन्मयता के साथ वर्मी खाद निर्माण में जुटी हुई है। आत्मा योजना के तहत् महिलाओं को वर्मी खाद बनाने का प्रशिक्षण व खाद उत्पादन के लिए केंचुएं प्रदान किये गये है। इसके अलावा फॉर्म स्कूल का संचालन कर जैविक खाद निर्माण की बारीकियों से उन्हें अवगत कराया गया है। गौठान में स्थापित वर्मी टैंक और वर्मी बेड से महिलाएं खाद बना रही हैं। खाद के पैकिंग के लिए बारदाने, सिलाई मशीन और तौलने के लिए मशीन कृषि विभाग एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा उपलब्ध कराया गया है। तैयार खाद समितियों के माध्यम से विक्रय हो रहा है। इससे प्राप्त राशि से महिलाएं आर्थिक लाभ प्राप्त कर रही है।
बिलासपुर जिले में ऐसे ही एक स्व सहायता समूह से जुड़ी ग्राम ठरकपुर की श्रीमती ममता टेकाम ने बताया कि कृषि विभाग द्वारा गोबर में केंचुआ डालकर खाद बनाने का तरीका बताया गया है। अब वह गांव से इकट्ठे किए गए गोबर को गौठान में लाने का काम करती है और समूह की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर वर्मी खाद का उत्पादन कर रही हैं। इस कार्य से उन्हें गांव में ही रोजगार मिल रहा है और वे सभी खुश है। उसने कहा कि गोधन न्याय योजना से उनके लिए रोजगार एवं पैसा कमाने का जरिया मिला है।
कोटा विकासखण्ड के ग्राम शिवतराई की महामाया स्व सहायता समूह की सदस्य श्रीमती सफीन बाई सिरसो ने बताया कि पहले वे अपने समूह में पैसे का लेनदेन करते थे। अब तो वर्मी खाद बनाने का काम कर रहे है। जिससे उन्हें मजदूरी मिल रही है। गांव के बाहर काम खोजने के लिए नहीं जाना पड़ता। रोज गौठान में आकर काम करते हैं। इससे फायदा हो रहा है। जय मां दुर्गा स्व सहायता समूह ग्राम जुहली की सदस्य श्रीमती दुखनी बाई मरकाम का कहना है कि पहले गांव की महिलाएं बेरोजगार थी। अब वर्मी खाद बनाने का काम मिला हैं। उनकी समिति में 10 सदस्य है। खाद से सभी की कमाई हो रही है। घर के चाय, शक्कर, निरमा आदि का खर्च और बच्चों का जेब खर्च देने में अब वे सक्षम है और भविष्य के लिए पैसा भी बचा रहे हैं। महामाया समूह शिवतराई की सदस्य कुमारी जलेश्वरी धु्रव ने कहा कि पहले अपने खर्च के लिए उन्हें पिता, भाई से पैसा मांगना पड़ता था। जब से वह गोधन न्याय योजना से जुड़ी है उसे अपने छोटे मोटे खर्च के लिए पैसे नहीं मांगना पड़ता और अपने तरीके से अपना पैसा खर्च करती है।
अपने गांव के गौठान में स्व सहायता समूह की महिलाएं पूर्णनिष्ठा के साथ जैविक खाद उत्पादन कार्य में लगी हैं। यह इतना आसान है कि वे दैनिक परिवारिक कार्याें के उपरांत बचे हुए समय का उपयोग खाद निर्माण के लिए करती है। महिलाएं अपने कार्य इस प्रकार करती है कि किसी भी सदस्य पर कार्य का ज्यादा बोझ नहीं पड़ता