छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के 3445 मकान करीब पांच साल से नहीं बिक रहे हैं। इन मकानों पर बोर्ड ने करीब 506.79 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। बोर्ड के सामने अब बड़ी समस्या खड़ी हो गई है, क्योंकि ये मकान जर्जर होते जा रहे हैं। इन मकानों की मरम्मत की जाएगी तो कीमत और बढ़ जाएगी। ऐसे में यह बड़ी परेशानी है कि जब पुरानी कीमत पर मकान नहीं बिक रहे हैं तो ज्यादा कीमत पर कैसे बिकेंगे। जर्जर मकानों में बड़ी रकम फंसने की वजह से बोर्ड के अफसर परेशान हो गए हैं। क्योंकि इन मकानों को तोड़ा भी नहीं जा सकता है। ऐसे में अब इन मकानों को किस तरह से बेचा जाए इस पर काम शुरू हो गया है। जानकारों का कहना है कि बोर्ड को मकानों की मरम्मत कराने के बाद पुरानी कीमत पर ही बेचना चाहिए। इससे मकानों की मूल लागत वापस आ सकती है। हाउसिंग बोर्ड के ज्यादातर मकान शहरी इलाकों में खाली है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बोर्ड के अफसर शहर से 10 से 15 किमी दूर प्रोजेक्ट लाते हैं। शहर से दूरी ज्यादा होने से लोग वहां से जाने से हिचकिचाते हैं। खराब सड़कें भी मकान न बिकने की सबसे बड़ी वजह है। सबसे ज्यादा 1867 मकान रायपुर जिले में खाली हैं। इनमें 472 एचआईजी, 640 एमआईजी, 299 एलआईजी और 456 ईडब्ल्यूएस के मकान हैं। इतना ही नहीं बिना किसी ठोस योजना के बोर्ड के अफसरों ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी मकान बना दिए। इस वजह से बस्तर में 19, दंतेवाड़ा में 30 और कांकेर में 25 मकानों की बिक्री कई साल से अटकी है। यह भी तय माना जा रहा है कि ये मकान नहीं बिकेंगे। 1. जयस्तंभ चौक से खिलौरा कॉलोनी की दूरी करीब 14 किमी है।
2. हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनी में 10 साल बाद भी जरूरी सुविधा नहीं है। 328 करोड़ के मकान रायपुर में ही खाली राज्यभर में राजधानी में ही सबसे ज्यादा मकान बन रहे हैं, चाहे वो निजी बिल्डरों के हों या छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के। केवल रायपुर जिले में ही हाउसिंग बोर्ड के 327.77 करोड़ के मकान नहीं बिक पाए हैं। इतनी बड़ी रकम के मकान नहीं बिकने से बोर्ड की आर्थिक स्थिति भी खराब हो रही है। अफसरों का दावा है कि जो मकान नहीं बिक रहे हैं उनके लिए बड़ी योजना तैयार की जा रही है। जल्द ही लोगों को स्पेशल ऑफर के साथ ये मकान बेचे जाएंगे।
ण् ताकि वे आसानी से बिक सके। भास्कर लाइव 10 साल में भी सड़क तक नहीं बनी राजधानी के धमतरी रोड में छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड की ओर से सेजबहार कॉलोनी के आगे खिलौरा में नई कॉलोनी बसाई गई थी। दैनिक भास्कर संवाददाता जब वहां पहुंचा तो लोगों ने बताया कि यह कई मकान अभी भी खाली हैं। इन मकानों की हालत बेहद जर्जर हो गई है। मकानों के आसपास बड़ी-बड़ी झाड़ियां उग आई हैं। लगातार विरोध-प्रदर्शन के बाद यह मुख्य सड़क बनाई गई थी। लेकिन कॉलोनी के अंदर की सड़कें अभी भी जर्जर और पुरानी हैं। कच्चे रास्तों से आना-जाना यह लोगों की मजबूरी है। कॉलोनी की सफाई भी व्यवस्थित नहीं है। सफाई ठेकेदार अपनी मर्जी से ही सफाई कर रहे हैं। कॉलोनी वालों ने बताया मकान खरीदने के करीब 10 साल बाद भी उन्हें मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल रही हैं। सीधी बात- ओपी चौधरी, मंत्री आवास एवं पर्यावरण विभाग नई पॉलिसी बना रहे हैं हाउसिंग बोर्ड के पास 3445 मकान ऐसे हैं जो सालों से नहीं बिके?
– इन मकानों को बेचने के लिए नई पॉलिसी तय की जा रही है।
इन मकानों में 506 करोड़ फंसे हैं, इससे कई काम शुरू हो जाते?
– मकान अलग-अलग जगहों पर स्थित है। छूट देकर बेच ही लेंगे।
मकानों की क्वालिटी खराब होती हैं, सड़कें अच्छी नहीं होती हैं?
– ऐसा नहीं है। गुणवत्ता का ख्याल रखा जाता है। सड़कें भी बनाई हैं।