भारत सरकार ने 13 मई को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था. इस फ़ैसले के लिए घरेलू बाज़ार में गेहूं और उससे जुड़ी वस्तुओं की बढ़ती क़ीमत को एक वजह बताया गया था.

भारत के प्रतिबंध लगाने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में गेहूं की कीमतों में उछाल देखा गया.

जिसके बाद G7 देशों ने भारत सरकार के फैसले की आलोचना की. लेकिन भारत को अपने फ़ैसले पर चीन जैसे देश से समर्थन मिला.

G7 दुनिया की सात सबसे बड़ी कथित विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमरीका शामिल हैं. इसे ग्रुप ऑफ़ सेवन भी कहते हैं.

चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक़, ” गेहूं के बढ़ते दाम के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराकर, दुनिया की भूख की समस्या का हल नहीं खोजा जा सकता. G7 देश भारत से प्रतिबंध हटाने की बात कर रहे हैं, वो अपने देशों से गेहूं का निर्यात बढ़ाने का फैसला क्यों नहीं कर लेते.”

ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है, “भारत के गेहूं निर्यात के फ़ैसले से कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ेंगी. लेकिन भारत का रोल इसमें ज़्यादा नहीं है क्योंकि भारत गेहूं का बहुत बड़ा निर्यातक नहीं है.”

जानकारों की मानें तो ऐसे मौके पर चीन से समर्थन की यूं तो भारत को उम्मीद नहीं थी, लेकिन इस समर्थन के अपने अलग मायने भी हैं.

दुनिया में गेहूं का बाज़ार

भारत के गेहूं निर्यात पर बैन का चीन ने क्यों किया समर्थन, ये जानने के लिए गेहूं की अर्थव्यवस्था को थोड़ा समझने की ज़रूरत है.

विश्व में गेहूं का निर्यात करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस और यूक्रेन हैं.

ये पाँचों देश मिल कर 65 फ़ीसदी बाज़ार पर क़ब्ज़ा जमाए बैठे हैं.

इसमें से तीस फ़ीसदी एक्सपोर्ट रूस और यूक्रेन से होता है.

रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश ख़रीद लेते हैं.

जबकि यूक्रेन के गेहूं के ख़रीदार हैं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया.

अब दुनिया के दो बड़े गेहूं निर्यातक देश, आपस में जंग में उलझे हों, तो उनके ग्राहक देशों में गेहूं की सप्लाई बाधित होना लाज़मी है.

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