मां वो शब्द है जिसमे कायनात समाई है…
जिसकी कोख मे शुरु हुआ था जिन्दगी का सफर,
जिसकी गोद मे खोली थी आखें पहली बार,
जिसकी नजरो से ही दुनिया को देखा था, जाना था,
जिसकी उन्गलियां पकड कर चलना सीखा था पहली बार !!

उसी ने हमारी खुद से करायी थी पेह्चान,
दुनिया का समना करना भी उसी ने सिखाया,
जनम से ही दर्द से शुरु हुआ था रिश्ता हमारा,
शायद हर दर्द पे ईसीलिये निकलता है शब्द मां हर बार !!

मां की जिन्दगी होती है उसके बच्चे मे समायी,
पर बडे होते ही दूर हो जाती है राहे उसकी जिन्दगी की,
भुला देता है इस शब्द की एहमियत अपनी व्यस्तता मे कही,
फिर अचानक कही से सुनाई देती है आवाज मां,

आखें भर आती है बस धार धार !!
मां का कर्ज नही चुका सकता कभी कोई इस दुनिया मे,
भगवान से भी बडा है मां क दर्जा इस दुनिया मे,
ना होती वो तो ना बसता ये सन्सार कभी,
ना होगी वो तो भी खत्म हो जाएगा सन्सार ये सभी!!

कस्ती है इसलिये ‘मुस्कान’ जागो अब भी वक्त है,
ना करो शर्मसार अपनी जननी को, ना करो अत्याचार औरत के अस्तित्व पर,
न मारो बेटी के अन्श को यु हर बार.
नही तो इक दिन तरस जाएगा मां के एह्सास को ही ये सारा सन्सार !!
क्योंकि मां वो शब्द है जिसमे कायनात समाई है…

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