दुर्ग नगर निगम में 5 जनवरी को छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लखनलाल मिश्र की प्रतिमा का अनावरण किया जाएगा। यह प्रतिमा कांग्रेस शासन काल में बनकर तैयार हो गई थी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसका अनावरण नहीं होने दिया। अब प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह और उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा प्रतिमा का अनावरण करेंगे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लखनलाल मिश्र छत्तीसगढ़ के रिटायर्ड आईएएस और वर्तमान भाजपा नेता गणेश शंकर मिश्र के पिता थे। राज्य शासन के निर्देश पर दुर्ग जिले के सर्किट हाउस में उनकी प्रतिमा को लगाया गया है। रविवार 5 जनवरी को उसका अनावरण कार्यक्रम निगम ने आयोजित किया है। कांग्रेस सरकार में तैयार हुई थी प्रतिमा रिटायर्ड IAS गणेश शंकर मिश्र ने बताया कि, उनके पिता की प्रतिमा 5 साल पहले बनकर तैयार हो गई थी, लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल थे, इसलिए उन्होंने उनकी प्रतिमा का अनावरण नहीं होने दिया। अब फिर से भाजपा की सरकार प्रदेश में आई है। उसने एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के त्याग को सम्मान देते हुए उनकी प्रतिमा का अनावरण किया है। अंग्रेजों के दरोगा थे, फिर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ी लड़ाई लखनलाल मिश्रा ब्रिटिश पुलिस में अफसर थे। इतने बड़े पद में रहते हुए भी उन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने देश की आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन किया। वो ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिनके किस्से सुनकर खुद महात्मा गांधी ने उनकी तारीफ की थी। दैनिक भास्कर से यह किस्सा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लखनलाल मिश्रा के बेटे गणेश शंकर मिश्रा (रिटायर्ड IAS) ने साझा किया है। उन्होंने बताया कि 15 दिसंबर 1945 में देश में अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन जोरों पर था। तब के छत्तीसगढ़ के इलाके में आरके पाटिल नाम के अधिकारी का दबदबा हुआ करता था। हालांकि बाद में वो नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो चुके थे। आजादी के आंदोलन के इस क्षेत्र के बड़े नेता थे। वो दुर्ग आने वाले थे। उनके स्वागत में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उमड़ पड़े। उस समय दुर्ग के कोतवाली थाने में पुलिस अफसर लखनलाल मिश्रा पदस्थ थे। ब्रिटिश पुलिस के अधिकारी मिश्र को अंग्रेजों ने हुक्म दिया कि भीड़ को संभालना है। उनकी ड्यूटी स्टेशन पर लगाई गई। उन्हें ऑर्डर मिले थे कि हंगामा होने या भारत माता के नारे लगाने वालों पर सख्त कार्रवाई करें। लेकिन पुलिस स्टेशन में इससे उलट हुआ। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से सूत की माला लेकर लखन लाल मिश्रा ने खुद वो माला आरके पाटिल को पहनाई। ब्रिटिश यूनिफॉर्म में ही भारत माता की जय के नारे लगाए, महात्मा गांधी के जय के नारे लगाए। ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ लड़ी आजादी की लड़ाई यह सूचना जैसे ही अंग्रेज हुक्मरानो तक पहुंची तो उनकी चिंता बढ़ गई कि अब ब्रिटिश अफसर भी आजादी के आंदोलन में कूदने लगे हैं। अंग्रेजों को लखन लाल मिश्रा का भारत के प्रति प्रेम पसंद नहीं आया। उन पर कार्रवाई के आदेश जारी हुए। तब एक अधिकारी ने लखन लाल मिश्रा से यह कहा कि, तुम यह लिखकर दे दो कि भावावेश में आकर उन्होंने ऐसा किया और माफी मांग लो। लखन लाल मिश्रा ने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया और साफ-साफ कह दिया कि उन्होंने जो किया अपनी पूरी जानकारी के साथ किया। उन्होंने खुद उस नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने वर्दी और बिल्ले उतारकर पुलिस विभाग की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता के संग्राम में शामिल हो गए। महात्मा गांधी ने उनके कार्य को सराहा छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के संचनालय के ऑफिशियल रिकॉर्ड के मुताबिक, जब यह बात शेगाव वर्धा आश्रम में महात्मा गांधी के पास पहुंची, तो उन्होंने लखन लाल मिश्रा के इस काम को खूब सराहा। आचार्य विनोबा भावे, हरि विष्णु कामत जैसे उस वक्त के बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भी लखनलाल मिश्रा के इस कदम की तारीफ की। 1932 में ज्वाइन किया था ब्रिटिश पुलिस विभाग लखन लाल मिश्रा का जन्म रायपुर के मुरा गांव में 24 सितंबर 1909 को हुआ था। 1930 में इलाहाबाद के इवनिंग कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास करने के बाद वे सन 1932-33 में ब्रिटिश पुलिस विभाग में उप निरीक्षक के पद पर नियुक्त हुए। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय रमेश नैयर ने पंडित लखन लाल मिश्र को त्याग वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बताया है। मिश्रा के नाम पर मिलता है पुलिस कर्मियों को सम्मान छत्तीसगढ़ में पुलिस कर्मियों को आज भी बेहतर काम के लिए लखनलाल मिश्र सम्मान से सम्मानित किया जाता है। साल 2022 में यह सम्मान लक्ष्मी प्रसाद जायसवाल को मिला। हर साल राज्योत्सव के मौके पर पुलिस विभाग में सर्वश्रेष्ठ सेवा देने वाले पुलिसकर्मियों, अधिकारियों को पंडित लखनलाल मिश्र सम्मान से सम्मानित किया जाता है।

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