फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ यानी ‘केजीएफ 2’ को देखने के बाद सबसे पहले वह बात जो सभी लोग सबसे पहले जानना चाहते हैं, ‘क्या केजीएफ 3’ भी बनेगी? तो इसका जवाब हां में है। फिल्म बनाने वालों ने फिल्म के अगले अध्याय का सूत्र फिल्म के क्लाइमेक्स में दिखा दिया है। फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ एक विशाल कैनवस के लिए सोची गई कहानी है। आईमैक्स पर इसे देखने का आनंद ही कुछ और है, हां, बशर्ते सिनेमाघर का ऑडियो सिस्टम ठीक से काम कर रहा हो। सिनेमा दृश्य श्रव्य माध्यम है, अंग्रेजी में ऑडियो विजुअल। जो दिख रहा है और जो सुनाई दे रहा है, उसका संतुलन फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ में कमाल का साधा गया है। परदे पर कुछ नहीं दिख रहा हो और आवाज आ रही हो तो भी दर्शक समझ जाता है कि आखिर चल क्या रहा है! ये फिल्म सिनेमा में ‘एंग्री यंगमैन’ का वजूद भी तलाशती है और जिस तरह यश के परदे पर पहले प्रवेश पर सिनेमाहॉल में दर्शकों की सीटियां, तालियां और शब्दावलियां गूंजती हैं, उनसे लगता यही है कि सिनेमा असल में यही है। दिस इज यश।
सोने की तस्करी, पैसे का खेल
फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ की कहानी कोलार गोल्ड फील्ड पर कब्जे की कहानी में पिछली फिल्म में ही तब्दील हो चुकी थी। मुंबई से निकला रॉकी अब दुनिया पर राज करना चाहता है। प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रतीक्षा कक्ष में वह अपना परिचय देश के सीईओ के रूप में देता है। सोने के अवैध कारोबार की देश विदेश से कड़ियां जोड़ती ये फिल्म देश की वित्तीय व्यवस्था की उस कमजोर कड़ी पर भी चोट करती है, जिसमें गुमनाम लोगों के बैंक खाते खोलकर लोग रातों रात अरबपति बन गए। फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ की कहानी सुनाने के लिए इस बार आनंद नहीं है। कहानी उनका बेटा विजयेंद्र सुना रहा है। कहानी के किरदार जाने पहचाने हैं। फिल्म अपनी पूर्ववर्ती फिल्म ‘आरआरआर’ की तरह दिल्ली तक चढ़कर आती है। दक्षिण में बन रहे सिनेमा की कहानी को उत्तर तक लाने की जो शुरुआत मणिरत्नम ने फिल्म ‘रोजा’ में की थी, उस परंपरा की वाहक अब ‘आरआरआर’ और ‘केजीएफ चैप्टर 2’ जैसी मेगा बजट फिल्में बन रही हैं।
जानदार पटकथा, शानदार संवाद
निर्देशक प्रशांत नील की फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ को लेकर हिंदी भाषी दर्शकों में ‘आरआरआर’ से बेहतर उत्साह है। फिल्म भी ये ‘आरआरआर’ से बेहतर बन पड़ी है। हालांकि, ‘आरआरआर’ और फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ दोनों की कम से कम एक कमजोर कड़ी समान है और वह है इनका जरूरत से ज्यादा लंबा खिंचता क्लाइमेक्स। ‘केजीएफ 2’ को हिंदी में लिखने वाली टीम ने कमाल का काम किया है। इसके संवाद आपको आखिर तक याद रह जाते हैं, जैसे, ‘यहां सिर शाश्वत नहीं है, सिर्फ ताज शाश्वत है’। या फिर, ‘हिम्मत के लिए दो चीजें चाहिए होती हैं, एक पागलपन और दूसरा ईमानदारी। पागलपन हम यहां रोज देखते हैं, ये देखो ईमानदारी..!’ फिल्म में एक जगह रॉकी ये भी कहता है कि ये मां की जिद की कहानी है। लेखक और निर्देशक प्रशांत नील के जुनून से बनी इस फिल्म में सलीम-जावेद की लिखावट के सारे फॉर्मूले हैं। ध्यान से देखेंगे तो यश के हावभाव, उनके पहनावे, उनकी अकड़ और उनके रुआब में आपको कभी ‘दीवार’, कभी ‘शोले’ तो कभी ‘सुहाग’ के अमिताभ बच्चन का अक्स नजर आएगा।
स्टाइलिश ‘एंग्री यंगमैन’
बड़े परदे पर सत्तर के दशक में देश के गुस्से को एक रूप देने की सलीम-जावेद की कोशिश को अमिताभ बच्चन ने ‘एंग्री यंगमैन’ का आकार दिया। गुस्सा युवाओं में फिर पनप रहा है। फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ की कहानी हालांकि सत्तर के दशक से अस्सी के दशक तक आ चुकी है। देश की महिला प्रधानमंत्री की चौखट तक जाकर रॉकी वार करता है। संसद में भी उसकी सेना घुस जाती है। ये सब इसके बावजूद कि रॉकी ‘वॉयलेंस’ पसंद नहीं करता। अब ‘वॉयलेंस’ रॉकी को पसंद करे तो वह क्या करे। रॉकी के किरदार में यश ने फिर एक बार महफिल लूट ली है। उनका मैनरिज्म तालियां बटोरता है। उनका स्टाइल सीटियां बटोरता है। और, जब रॉकी परदे पर अपनी मां, पत्नी या बस्ती की एक मुस्लिम महिला से मूक संवाद करता है तो आंसू भी ले आता है। ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘केजीएफ 2’ की कमाई का अंतर यही है। ‘केजीएफ 2’ रिश्तों की वह तुरपाई है जो समाज को जोड़ने में मदद करती है।
सामाजिक समरसता का बड़ा संदेश
मुंबई का सिनेमा जब लकीर के एक तरफ खड़े होकर दूसरी तरफ के विलेन तलाश रहा है तो पहले ‘आरआरआर’ और अब ‘केजीएफ 2’ में सामाजिक समरसता की एक नई इबारत लिखी जा रही है। यहां मुश्किल में काम आने वाले लोगों के मजहब पर भीम को भी फख्र है और रॉकी को भी। इन दोनों फिल्मों की सफलता का राज भी यही है। इन्हें देखते हुए आपको पास की सीट पर बैठे दर्शक से सतर्क नहीं रहना होता। फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ में यश के बाद रवीना टंडन और संजय दत्त दोनों का काम दमदार है। रवीना टंडन ने तो जिस गरिमा और गमक के साथ प्रधानमंत्री का किरदार निभाया है, वह उन्हें आने वाले दिनों में पुरस्कार भी दिला सकता है। संजय दत्त इस फिल्म में ‘अग्निपथ’ के कांचा से भी आगे निकल गए हैं। उनकी वेशभूषा और उनके किरदार का रूप चित्रण हालांकि एक विदेशी सीरीज के किरदार से सौ फीसदी प्रेरित दिखता है लेकिन उनका काम रौबदार है। श्रीनिधि शेट्टी तो अब ‘केजीएफ 3’ में नहीं दिखेंगी लेकिन समंदर की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओँ में सोया रॉकी फिर लौटने वाला है।
फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ एक विशुद्ध मसाला फिल्म है। कहानी बहुत हिंसक है। किरदार बातें कम करते हैं, अस्त्र शस्त्र ज्यादा चलाते हैं। ठेठ मुंबइया फिल्मों के मसालों को हाल के दिनों की कथानक आधारित फिल्मों में मिस करते रहे हिंदी सिनेमा के दर्शकों को ये फिल्म खूब पसंद आ सकती है। बस ध्यान ये रहे कि इस फिल्म में वैसे तो करुणा, श्रृंगार और वात्सल्य के रंग भी हैं लेकिन कहानी असल में वीभत्स, रौद्र और भयानक रसों में ज्यादा पगी है।