चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘बीते 70 सालों में हमने असमंजस की संस्कृति पैदा कर दी है। साथ ही विश्वास न करने का कल्चर भी चल पड़ा है, जिससे हमारे अधिकारी फैसले नहीं ले पाते हैं।’

हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट 2022 में देश के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका के सामने खड़ी मौजूदा चुनौतियों का जिक्र किया। उन्होंने कि भारतीय न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती लंबित मुकदमों की संख्या है। CJI ने कहा, ‘बीते 70 सालों में हमने असमंजस की संस्कृति पैदा कर दी है। साथ ही विश्वास न करने का कल्चर भी चल पड़ा है, जिससे हमारे अधिकारी फैसले नहीं ले पाते हैं। यही एक वजह है कि अदालत में बहुत से मामले लंबित पड़े हैं।’

चीफ जस्टिस ने यह बात ऐसे समय में कही है जब शुक्रवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा कि उसने पहले स्पष्ट किया था कि एक बार सरकार ने अपनी आपत्ति जता दी है और कॉलेजियम ने उसे अगर दोबारा भेज दिया है तो उसके बाद नियुक्ति ही होनी है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि नामों को बेवजह लंबित रखना स्वीकार्य नहीं है।

दमन का भी इंस्ट्रूमेंट बन सकता है कानून: CJI
डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि कानून न्याय का एक इंस्ट्रूमेंट हो सकता है और उत्पीड़न का भी। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि कानून दमन का साधन न बने यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी केवल जजों की ही नहीं है, बल्कि सभी डिसीजन मेकर्स की भी है। हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट को संबोधित करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘आज भी कानून की किताबों में ऐसे लॉ मौजूद हैं, जिनका उत्पीड़न के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ये कानून औपनिवेशिक काल से ही चले आ रहे हैं।’

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