विपक्ष की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा गांधी परिवार की आलोचक रही हैं। वह कांग्रेस नेता रहते हुए भी कांग्रेस पर टिकट बेचने का आरोप लगा चुकी हैं।
विपक्ष ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मार्गरेट अल्वा को अपना संयुक्त उम्मीदवार चुना है। महीने भर विपक्षी दलों में चर्चा के बाद यह नाम फाइनल किया गया है। इस काम में जितना शरद पवार, ममता बनर्जी और सीताराम येचुरी ऐक्टिल दिखे उतान सोनिया गांधी, राहुल गांधी ऐक्टिव नहीं दिखे। हालांकि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और जयराम रमेश ने एनसीपी चीफ के फैसले को मान लिया।
अल्वा कांग्रेस नेता रहते हुए भी गांधी परिवार की आलोचक रही हैं। 2016 में प्रकाशित हुआ उनका संस्मरण ‘करेज ऐंड कमिटमेंट’ में उन्होंने गांधी परिवार को लेकर प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष कई बातें कही थीं। वहीं राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा भी जनता दल और भाजपा में रहे हैं और गांधी परिवार की जमकर आलोचना करते रहे हैं। अल्वा ने भी अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले को लेकर लिखा था।
टिकट बेचने का भी लगा चुकी हैं आरोप
मार्गरेट अल्वा ने कांग्रेस पर टिकट बेचने का भी आरोप लगाया था। 2008 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बेटे को टिकट न मिलने से नाराज अल्वा ने कांग्रेस नेतृत्व पर निशाना साधा था। उस वक्त केंद्र में भी यूपीए की सरकार थी। उनके आरोप के बाद उन्हें पार्टी महासचिव सहित कई जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया था। हालांकि 2009 में उन्हें उत्तराखंड की पहली महिला राज्यपाल बनने का मौका मिला।
अल्वा की सास वायलेट एक स्वतंत्रता संग्राम की योद्धा थीं और वह लगभग साढ़े सात साल राज्य सभा की उपसभापति रहीं। राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के बाद हुए चुनाव उस वक्त के उपराष्ट्रपति वीवी गिरि को राष्ट्रपति बनाया गया। वायलट उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ना चाहती थीं लेकिन इंदिरा गांधी ने उनका समर्थन नहीं किया। ऐसे में उन्होंने उपसभापति के पद से भी इस्तीफा दे दिया। इसके पांच दिन बाद उनकी मौत हो गई।
राज्यसभा सीट को लेकर सोनिया गांधी से हुई थी ‘अनबन’
जब 1992 में अल्वा को राज्यसभा का प्रत्याशी बनाया गया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव और सोनिया गांधी के बीच इस मामले में अनबन हो गई थी। राव ने सोनिया गांधी के प्राइवेट सेक्रटरी विन्सेंट जॉर्ज को प्रत्याशी बनाने से इनकार कर दिया था।