हम में से ज्यादातर लोगों ने बचपन में अपने बड़ों से सुना होगा कि अच्छे कर्म करने से स्वर्ग मिलता है और बुरे कर्म करने से नर्क मिलता है. स्वर्ग में इंसान की आत्मा का भव्य स्वागत और सत्कार होता है, वहीं नर्क में इंसान को अपने बुरे कर्मों की सजा को भोगना पड़ता है. स्वर्ग और नर्क की बातोंं का जिक्र गरुड़ पुराण में भी किया गया है. गरुड़ पुराण को सनातन धर्म में महापुराण माना गया है. इस पुराण में भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ और श्रीहरि की वार्तालाप के जरिए लोगों को जीवन जीने के सही तरीके, सदाचार, भक्ति, वैराग्य, यज्ञ, तप आदि के महत्व के बारे में बताया गया है.
साथ ही कर्मों के हिसाब से स्वर्ग लोक और नर्क लोक में जाने की बातों का भी जिक्र है. गरुड़ पुराण में जीवन-मृत्यु और मृत्यु के बाद तक की स्थितियों के बारे में बताया गया है. हालांकि स्वर्ग और नर्क की बातें कितनी सटीक हैं, ये तो बताया नहीं जा सकता. लेकिन गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने एक बात जरूर स्पष्ट की है कि आत्मा का कभी अंत नहीं होता. आत्मा सिर्फ शरीर को बदलती है, ठीक उसी तरह जैसे व्यक्ति पुराने कपड़ों को बदलकर नए वस्त्र धारण करता है. सिर्फ पंचतत्वों से बना शरीर ही मरता है. लेकिन ऐसे में एक सवाल सभी के जेहन में उठता है कि अगर आत्मा मरती नहीं, तो शरीर मृत होने के बाद वो जाती कहां है. कैसे उसे नया शरीर मिलता है. आइए जानते हैं इस बारे में क्या कहता है गरुड़ पुराण.
सबसे पहले यमलोक जाती है आत्मा
गरुड़ पुराण के अनुसार जब मृत्यु आती है तो यमलोक से दो यमदूत आत्मा को साथ लेने के लिए आते हैं. यमदूतों के आते ही आत्मा शरीर छोड़ देती है और उनके साथ यमलोक चली जाती है. यमलोक में ले जाकर यमदूत उसे 24 घंटे तक वहां रखते हैं और उसे दिखाते हैं कि अपने जीवन में उसने क्या-क्या अच्छे और क्या-क्या बुरे कर्म किए हैं. इसके बाद आत्मा को उसी घर में छोड़ दिया जाता है, जहां उसका जीवन बीता होता है. 13 दिनों तक आत्मा अपने परिजनों के बीच रहती है. ये भी मान्यता है कि जिसने जीवन में अच्छे कर्म किए हैं, उसके प्राण निकलने में ज्यादा परेशानी नहीं होती, लेकिन जिसने बुरे कर्म किए हैं, उसे प्राण छोड़ते समय काफी पीड़ा का अनुभव होता है.
13 दिनों बाद तय होती है आगे की यात्रा
गरुड़ पुराण के मुताबिक 13 दिन पूरे करने के बाद आत्मा को फिर से यमलोक के रास्ते पर जाना होता है. यमलोक के रास्ते मेंं उसे तीन अलग-अलग मार्ग मिलते हैं. स्वर्ग लोक, पितृ लोक और नर्क लोक. व्यक्ति के कर्मों के आधार पर ये निर्धारित किया जाता है कि उसे किस मार्ग पर भेजा जाएगा. पहला अर्चि मार्ग यानी देवलोक की यात्रा का मार्ग माना जाता है. दूसरा मार्ग धूम मार्ग पितृलोक का मार्ग बताया गया है और तीसरा मार्ग उत्पत्ति विनाश मार्ग जो नर्क की यात्रा के लिए होता है. अपने पाप और पुण्य को निर्धारित समय तक भोगने के बाद आत्मा को फिर से शरीर मिलता है.