नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों की अपनी यूरोप यात्रा में अपने दूसरे पड़ाव पर डेनमार्क पहुंच गए हैं। इससे पहले प्रधानमंत्री जर्मनी पहुंचे थे। भारत और डेनमार्क के बीच राजनयिक संबंधों की नींव साल 1957 में रखी गई थी। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डेनमार्क का दौरा किया था। दोनों देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, एनर्जी और रिसर्च क्षेत्र में सहयोग के साथ सौहार्दपूर्ण और दोस्ताना संबंध हैं। डेनमार्क का नई दिल्ली और कोपेनहेगन में भारत का दूतावास है। सितंबर 2020 में भारत और डेनमार्क ने दूरगामी लक्ष्यों वाली ‘हरित रणनीतिक साझेदारी’ (Green Strategic Partnership) के रूप में एक नए युग की शुरुआत की थी। यह कदम भारत को जलवायु परिवर्तन एवं अन्य वैश्विक समस्याओं से संबंधित स्थायी समाधान तलाशने में सहायता करने वाला माना गया था। यह साझेदारी अक्टूबर 2021 में प्रधानमंत्री फ्रेडेरिक्सेन की भारत यात्रा के दौरान एक परिणामोन्मुखी पंचवर्षीय कार्ययोजना में बदली थी।

एनर्जी फील्ड में मील का पत्थर है समझौता
भारत और डेनमार्क के बीच ‘हरित रणनीतिक साझेदारी’ वाला समझौता ग्रीन तकनीक पर आधारित है। इसमें पवन ऊर्जा, जल प्रौद्योगिकी और ऊर्जा दक्षता आदि में परस्पर निकट सहयोग की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। भारत में इन क्षेत्रों में डेनिश तकनीकों की बहुत मांग है। यह समझौता डेनमार्क से भारत को निर्यात और निवेश बढ़ाने की राह खोलने वाला माना जा रहा है। भारत ने डेनमार्क की कंपनियों को लोगों का चयन करने में मदद करने के लिये ‘भारत-डेनमार्क कौशल संस्थान’ बनाने का भी समर्थन किया है। इसकी वजह है कि डेनमार्क की कंपनियों को स्थानीय कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

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