फ्लू की वैक्सीन से कोरोना के संक्रमण को बढ़ने स रोका जा सकता है। इतना ही नहीं, ये स्ट्रोक, रक्त के थक्के और सेप्सिस का खतरा भी घटाती है। यह दावा अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी मिलर स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने किया है।

वैज्ञानिकों का कहना है, रिसर्च के दौरान सामने आया है कि जिन लोगों को फ्लू यानी इंफ्लुएंजा की वैक्सीन लग चुकी थी उनको कोरोना होने पर इमरजेंसी और आईसीयू में भर्ती होने का रिस्क कम हो गया।रिसर्च के दौरान कई बड़े देशों में मरीजों का रिकॉर्ड जांचा गया। इनमें अमेरिका, यूके, जर्मनी, इटली, इजरायल और सिंगापुर के मरीज शामिल हैं। रिसर्चर्स ने 7 करोड़ में से 37,377 मरीजों को दो ग्रुप में बांटा। पहले ग्रुप में शामिल मरीजों को कोरोना से संक्रमित होने ने पहले ही फ्लू की वैक्सीन दी जा चुकी थी। वहीं, दूसरे ग्रुप में कोविड के ऐसे मरीज थे, जिन्होंने इस वैक्सीन की डोज नहीं ली थी।रिजल्ट में सामने आया कि जिन लोगों ने फ्लू की वैक्सीन नहीं लगवाई थी उनके आईसीयू में भर्ती होने का खतरा 20 फीसदी तक अधिक था। इनके इमरजेंसी में भर्ती होने का खतरा 58 फीसदी, सेप्सिस होने की आशंका 45 और स्ट्रोक होने का खतरा 58 फीसदी तक होता है।

फ्लू की वैक्सीन और कोविड के बीच कनेक्शन ढूंढा

मिलर स्कूल के प्रोफेसर देविंदर सिंह कहते हैं, दुनियाभर में अब तक एक छोटी आबादी को ही वैक्सीन के दोनों डोज लग पाए हैं। ऐसे में इस महामारी में होने वाली मौतों की संख्या और बीमारी को घटाने की जरूरत है।शोधकर्ता बेंजामिन स्लेविन का कहना है, हमारी पूरी टीम फ्लू की वैक्सीन और कोविड के मरीजों की संख्या घटाने के बीच एक कनेक्शन को ढूंढने में लगी हुई है।रिसर्चर्स का कहना है, हमने यह पता लगाने की कोशिश की थी कि कोरोना के कितने मरीजों को बुरी स्थितियों से बचने के लिए फ्लू वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी। टीम ने ऐसे 176 मरीजों को अलग किया। इन मरीजों को कोविड होने के 120 दिन के अंदर फ्लू की वैक्सीन दी गई। यह वैक्सीन मौत का खतरा कितना घटाती है, इसका पता नही चल पाया है।

 

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