DMK का कहना है कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019, में केवल 6 धर्मों यानी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों को शामिल किया गया है. इस संबंध में डीएमके अध्यक्ष स्टालिन द्वारा एक प्रतिनिधित्व तैयार किया गया था और एक करोड़ नागरिकों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था. इसे राष्ट्रपति को भेजा गया था, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई है.
नई दिल्ली:
तमिलनाडु में सत्ताधारी पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK) ने सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)को चुनौती दी है. DMK ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 मनमाना है. क्योंकि यह केवल 3 देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से संबंधित है. DMK का कहना है कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019, में केवल 6 धर्मों यानी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों को शामिल किया गया है.
इस संबंध में डीएमके अध्यक्ष स्टालिन द्वारा एक प्रतिनिधित्व तैयार किया गया था और एक करोड़ नागरिकों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था. इसे राष्ट्रपति को भेजा गया था, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई है.
बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून 2019 (CAA) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब 6 दिसंबर को सुनवाई होगी. आज चीफ जस्टिस (CJI) यू यू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने 3 हफ्ते में आसाम और त्रिपुरा को जवाब दाखिल करना है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील पल्लवी प्रताप और केंद्र की ओर से कनु अग्रवाल को नोडल अफसर नियुक्त किया. दोनों सारे दस्तावेज एक साथ कर मामलों का बंटवारा करेंगे और पक्षों को देंगे. सभी पक्षों को तीन पेज की लिखित दलील देने को कहा गया है. अगले दो हफ्तो में याचिकाकर्ताओं को जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है. कुल 232 याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है.
डीएमके ने CAA को मनमाना बताया, क्योंकि इसमें उन तमिलों को शामिल नहीं किया गया है जिनका श्रीलंका में उत्पीड़न हुआ था. डीएमके ने कहा है कि ये विवादित अधिनियम मनमाना है, क्योंकि यह सिर्फ तीन देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से संबंधित है और केवल छह धर्मों अर्थात हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों तक सीमित है. इस्लाम को भी इससे बाहर रखा गया है. इसके अलावा, धार्मिक अल्पसंख्यकों पर विचार करते हुए भी यह भारतीय मूल के ऐसे तमिलों को बाहर रखता है जो वर्तमान में उत्पीड़न के कारण श्रीलंका से भागकर भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं.
सीएए-2019 से भारत में 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता प्राप्त करने की सुविधा मिलती है. यह सुविधा भी उनके लिए ही है जिन्हें पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और अन्य संगत प्रविधानों और फारेन एक्ट, 1946 के तहत केंद्र सरकार से छूट हासिल है.
इससे पहले संसद में सीएए पारित होने के बाद, देश के विभिन्न हिस्सों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें पुलिस गोलीबारी और संबंधित हिंसा में लगभग 100 व्यक्तियों की मौत हो गई.