छत्तीसगढ़ी भाषा के कोस-कोस में बदलाव में एकरूपता की जरूरत

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा प्रदेश की कला, संस्कृति और साहित्य को संजोने के लिए नीत नए उपाए किए जा रहे है। छत्तीसगढ़ राज्य युवा उत्सव के अवसर पर राजभाषा आयोग के तत्वधान में पहली बार छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन राजधानी रायपुर के शासकीय नागार्जुन साइंस कॉलेज में 28 ले 30 जनवरी तक सम्पन्न हुआ। पहले दिन विद्वजन साहित्यकारों द्वारा लोक साहित्य के उन्नयन में युवाओं की भूमिका में विस्तार पूर्वक चर्चा की गई। इस मौक पर प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. पीसीलाल यादव, श्रीमती सरला शर्मा, डॉ. अनिल भतपहरी, चंद्रशेखर चकोर और रामेश्वर वैष्णव अपना विचार व्यक्त किया। सत्र की अध्यक्षता डॉ. चितरंजन कर और संचालन डॉ. सुधीर शर्मा ने किया।

साहित्य सम्मेलन को संबोधित करते हुए गीतकार रामेश्वर वैष्णव ने कहा कि प्रदेश में कोस-कोस में भाषा में परिवर्तन देखने को मिलता है इसमें एकरूपता की जरूरत है। छत्तीसगढ़ी व्याकरण को और अधिक सुदृढ़ बनाने की जरूरत है। साहित्यकार डॉ. पीसी लाल यादव ने कहा कि लोक साहित्य को हमारे पूर्वजों ने सहेज कर रखा है, उसेे संजोने के जरूरत बताई। राजभाषा आयोग सचिव साहित्यकार डॉ. अनिल भतहपरी ने कहा कि युवा वर्तमान में जिन  पंथी  को देखते उसमें नृत्य की प्रधानता है, जबकि पंथी गाने का उद्देश्य बिल्कुल अलग है। पंथी आज भले वैश्विक स्तर पर प्रसिद्धि हासिल की है, लेकिन वास्तव में बाबा गुरू घासीदास जी  संदेश को जन-जन तक पहुंचना प्रमुख उद्देश्य था। लोक साहित्य सम्मेलन में साहित्यकार श्री चंद्रशेखर चकोर सहित अन्य साहित्य के रसिकजन उपस्थित थे।

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