महाराष्ट्र में कुछ प्रमुख अखबारों में मंगलवार को प्रकाशित एक पन्ने के विज्ञापन में एक सर्वे के हवाले से मुख्यमंत्री पद के लिए शिंदे को फडणवीस की तुलना में अधिक लोगों की पसंद बताया गया था.
‘राष्ट्र में मोदी, महाराष्ट्र में शिंदे सरकार’ शीर्षक वाले विज्ञापन पर विपक्ष ने दावा किया कि सत्तारूढ़ भाजपा और शिंदे नीत शिवसेना के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. बुधवार को मराठी दैनिकों में प्रकाशित अखबारों में भी एक सर्वेक्षण के हवाले से दावा किया गया है कि महाराष्ट्र में 49.3 प्रतिशत मतदाता भाजपा और शिवसेना को पसंद करते हैं. इसमें कहा गया है कि 84 प्रतिशत मतदाताओं को लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व ने देश को विकास की दृष्टि दी है और 62 प्रतिशत मानते हैं कि ‘डबल इंजन’ की सरकार राज्य में विकास कार्य तेजी से कर रही हैं.
नये विज्ञापन में शिंदे के राजनीतिक गुरु माने जाने वाले आनंद दिघे के साथ फडणवीस और बाल ठाकरे की तस्वीरें हैं. इसमें राज्य सरकार में शामिल शिवसेना के अनेक मंत्रियों के भी फोटो हैं.
शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने कहा कि नया विज्ञापन फडणवीस की नाराजगी का नतीजा है. उन्होंने कहा, “यह तो साफ हो गया है कि उनके दिमाग में क्या है, लेकिन सबकुछ ठीक नहीं है. सरकार ताश के पत्तों की तरह ढह जाएगी. शिंदे और भाजपा के बीच छद्म युद्ध चल रहा है.”
वहीं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और सांसद सुप्रिया सुले ने हैरानी जताते हुए कहा कि सर्वे किसने किया और सैंपल साइज कितना था? उन्होंने पुणे में कहा, “मैं उन शुभचिंतकों को खोज रही हूं, जिन्होंने अखबारों में करोड़ों रुपये के विज्ञापन दिये. मुझे लगता है कि आज का डिजाइन दिल्ली से आया था और इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता.” बुधवार को नया विज्ञापन किसके इशारे पर जारी किया गया होगा, इस सवाल पर राकांपा नेता ने कहा, “दिल्ली से एक अदृश्य हाथ ने…”
राकांपा प्रवक्ता महेश तापसे ने नये विज्ञापन को मंगलवार को जारी विज्ञापन का संशोधित संस्करण करार दिया. उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र की जनता की जिज्ञासा यह जानने में होगी कि भाजपा और शिंदे नीत शिवसेना के बीच संबंध कितने मधुर हैं.”
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजित पवार ने कहा कि भाजपा और शिंदे नीत शिवसेना को जनता के समर्थन का इतना ही भरोसा है, तो उन्हें तत्काल चुनाव कराने चाहिए. पवार ने कहा कि बुधवार के विज्ञापन में जितने मंत्रियों की तस्वीरें छपी हैं, उनमें ज्यादातर विवादास्पद हैं.