संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानून के शासन को लागू करने से आतंकवाद और सीमा पार आतंकवाद समेत आक्रामकता से देशों की संप्रभुत्ता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की जानी चाहिए.’’

संयुक्त राष्ट्र: 

भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान का परोक्ष संदर्भ देते हुए कहा कि जो देश संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सीमा पार आतंकवाद का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. साथ ही उसने आतंकवाद के साझा खतरे के खिलाफ एकजुट होने तथा राजनीतिक लाभ के लिए दोहरे मानदंड न अपनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया. संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानून के शासन को लागू करने से आतंकवाद और सीमा पार आतंकवाद समेत आक्रामकता से देशों की संप्रभुत्ता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की जानी चाहिए.”

परिषद की जापान की अध्यक्षता के तहत ‘कानून के शासन’ पर सुरक्षा परिषद की खुली बहस में कंबोज ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान का संदर्भ देते हुए कहा कि जो देश संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सीमा पार आतंकवाद का इस्तेमाल करते हैं उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘यह तभी संभव है जब सभी देश आतंकवाद जैसे साझा खतरों के खिलाफ एकजुट हो जाए और राजनीतिक लाभ के लिए दोहरे मानदंड न अपनाए.”

उन्होंने कहा, ‘‘हमारी राय में नियमों आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बल से मुक्त होती है और संप्रभुत्ता और क्षेत्रीय अखंडता, पारदर्शिता तथा विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सम्मान पर आधारित है. कंबोज ने इस बात पर जोर दिया कि विवादों का शांतिपूर्ण समाधान कानून के राज को मजबूत करने के लिए अहम है. उन्होंने कहा, ‘‘कानून का राज इस बात पर जोर देता है कि देश एक-दूसरे की संप्रभुत्ता तथा क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें जैसा कि वह अपनी संप्रभुत्ता का सम्मान किए जाने की उम्मीद करते हैं.”

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा, ‘‘दुनिया के प्रत्येक क्षेत्र में नागरिक विनाशकारी संघर्षों, मानव जीवन की क्षति, बढ़ती गरीबी और भुखमरी के असर का सामना करते हैं. परमाणु हथियारों के गैरकानूनी विकास से लेकर गैरकानूनी बल प्रयोग तक देश दंड मुक्ति के साथ अंतरराष्ट्रीय कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने मानवीय और मानवाधिकार विनाश को जन्म दिया, बच्चों की एक पीढ़ी को आघात पहुंचाया तथा वैश्विक खाद्य एवं ऊर्जा संकट को और गहरा कर दिया.

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