सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2017 को विज्य माल्या को कोर्ट की अवमानना का दोषी माना था। इसके बाद कोर्ट ने उसी साल 10 जुलाई को विजय माल्या को पेश होने का निर्देश दिया था लेकिन कारोबारी उपस्थित नहीं हुआ।

भगौड़े कारोबारी विजय माल्या (Vijay Mallya) को कोर्ट की अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट 11 जुलाई को सजा सुनाएगा। जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली, रवींद्र एस भट और पीएस नरसिम्हा की तीन जजों की बेंच सोमवार को फैसला सुनाएगी। पीठ ने मामले में 10 मार्च को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट की ओर से साल 2017 में विजय माल्या को दोषी ठहराया था।

मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि माल्या यूनाइटेड किंगडम में एक स्वतंत्र व्यक्ति की तरह व्यवहार करता है और उससे संबंधित कार्यवाही के बारे में कोई जानकारी सामने नहीं आ रही है। सजा पर फैसला सुरक्षित रखने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था ‘हमें बताया गया है कि (माल्या के खिलाफ) ब्रिटेन में कुछ मुकदमे चल रहे हैं। हमें नहीं पता, कितने मामले लंबित हैं। मुद्दा यह है कि जहां तक हमारे न्यायिक अधिकार क्षेत्र का प्रश्न है तो हम कब तक इस तरह चल पाएंगे।’

‘पक्ष रखने में असहाय हूं’

वहीं, सुनवाई के दौरान माल्या के वकील कहा कि ब्रिटेन में रह रहे उनके मुवक्किल से कोई निर्देश नहीं मिल सका है इसलिए वह पंगु हैं और अवमानना के मामले में दी जाने वाली सजा की अवधि को लेकर उनका (माल्या का) पक्ष रख पाने में असहाय हैं। इससे पहले कोर्ट ने माल्या को दिए गए लंबे वक्त का हवाला देते हुए 10 फरवरी को सुनवाई की तारीख तय कर दी थी और भगोड़े कारोबारी को व्यक्तिगत तौर पर या अपने वकील के जरिए पेश होने का अंतिम मौका दिया था।

2017 में कोर्ट ने ठहराया था दोषी

माल्या को अवमानना के लिए 2017 में दोषी ठहराया गया था और उनकी प्रस्तावित सजा के निर्धारण के लिए मामले को सूचीबद्ध किया जाना था। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए माल्या की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका 2020 में खारिज कर दी थी। न्यायालय ने अदालती आदेशों को धता बताकर अपने बच्चों के खातों में चार करोड़ डॉलर ट्रांसफर करने को लेकर उन्हें अवमानना का दोषी माना था।

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