हर जगह आज क्रिसमस की धूम है। रंगीन झालरों से चर्चों को सजा दिया गया है। बस्तर के जगदलपुर में भी एक अंग्रेजी हुकूमत के दौर का ऐतिहासिक चर्च है, जिसे ‘लाल चर्च’ के नाम से जाना जाता है। करीब 134 साल पुराने इस चर्च को क्रिसमस के मौके पर शानदार सजाया गया है। जो आकर्षण का केंद्र है। वैसे तो छत्तीसगढ़ के बस्तर में कई चर्च स्थित हैं। हर चर्च की अपनी एक अलग खासियत और विशेषता है। जगदलपुर का यह 134 साल पुराना ‘लाल चर्च’ संभाग का सबसे पुराना और प्रसिद्ध चर्च है। अब आप के जहन में भी यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि आखिर इसे ‘लाल चर्च’ क्यों कहा जाता है? इसके पीछे की क्या कहानी है? तो चलिए हम आपको बस्तर के इस लाल चर्च के बारे में बताते हैं…. 1890 में रखी थी चर्च की नींव लाल चर्च कमेटी के सदस्य रत्नेश बेंजविन के अनुसार, साल 1890 का वो दौर था जब रायपुर से मिशनरी सीबी वार्ड बैलगाड़ी से बस्तर पहुंचे थे। उन्होंने बस्तर के काकतीय वंश के एक राजा से मुलाकात की। राजा ने जगदलपुर में उन्हें जमीन दान की। मिशनरी ने 1890 में ही उस जमीन पर चर्च की नींव रख दी। धीरे-धीरे निर्माण काम शुरू किया गया। खास बात यह रही कि, उस दौर में मिशनरियों ने चर्च बनाने के लिए लाल ईंट, बेल फल, गोंद और चूना का इस्तेमाल किया था। 33 सालों में निर्माण हुआ था पूरा बेल फल, चूना और गोंद का घोल बनाकर ईंटों की जुड़ाई की गई थी। हालांकि, काम ने धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ा था। इस चर्च को बनने में करीब 33 साल लग गए थे। फिर, सन 1933 में निर्माण काम पूरा कर लिया गया। मिशनरियों ने इस चर्च को ऐतिहासिक बनाने इस चर्च में सिर्फ एक ही रंग का इस्तेमाल करने का विचार बनाया। और लाल रंग का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया था। 30 से 40 फीट है चर्च की ऊंचाई फिर, इस चर्च के बाहर के हिस्से की पुताई लाल रंग से करवाई गई। लेकिन, अंदर सफेद रंग का इस्तेमाल किया गया था। चर्च में जिन-जिन चीजों का इस्तेमाल किया गया वे सभी लाल रंग के ही थे। चर्च की ऊंचाई करीब 30 से 40 फीट है। यदि ऊंचाई से देखा जाए तो चर्च क्रॉस के आकार में नजर आता है। 7 से 8 किमी तक सुनाई देती थी घंटी की आवाज चर्च में लगी घंटी की आवाज करीब 7 से 8 किमी तक सुनाई देती थी। आड़ावल में रहने वाले लोग भी घर बैठे चर्च के ऊपरी हिस्से को देख लिया करते थे। उस दौर से इस चर्च को लाल चर्च कहा जाने लगा। जो इलाके में आज भी चर्चित है। यह लाल चर्च बस्तर संभाग का सबसे बड़ा चर्च है। वर्तमान में इसे चंदैय्या मेथोडिस्ट एलिस्कोपल भी कहा जाता है। स्ट्रक्चर से नहीं करते छेड़छाड़ चर्च के दीवारों में प्लास्टर नहीं हुआ है। आज भी इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती है। वर्तमान में इस चर्च में ईसाई समुदाय के करीब 4 हजार से ज्यादा लोग प्रार्थना करने पहुंचते हैं। आज क्रिसमस के मौके पर यहां विभिन्न तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

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