चीन की राष्ट्रीय विधायिका ने सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा लायी गयी तीन बच्चों की नीति का शुक्रवार को औपचारिक रूप से समर्थन किया। यह नीति दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश में तेजी से कम होती जन्म दर को रोकने के मकसद से लायी गयी है। बता दें कि चीन में 1980 के दशक में राष्ट्रपति डेंग शाओपिंग के शासन में वन-चाइल्ड पॉलिसी यानी एक-बच्चे की नीति सख्ती से लागू की गई थी। इसके तहत माता-पिता सिर्फ एक बच्चा ही पैदा कर सकते थे। इन नियमों को तोड़ने वाले जोड़ों और उनके बच्चों से सरकारी सुविधाएं छीन ली जाती थीं। साथ ही उन्हें सरकारी नौकरियों और योजनाओं से भी दूर कर दिया जाता था। चीन ने यह योजना 2015 तक जारी रखी।

हालांकि, आबादी में बूढ़ों की संख्या बढ़ने और जन्मदर कम होने के बाद इस नीति को बदल कर टू-चाइल्ड पॉलिसी (दो बच्चों की नीति) कर दिया गया। पिछले साल चीन का जो सर्वे सामने आया, उसके मुताबिक 2020 में चीन में महज 1.2 करोड़ बच्चे ही पैदा हुए, जो कि 2019 के 1.46 करोड़ बच्चों के आंकड़े से कम था। इसके अलावा चीन में प्रजनन दर भी 1.3 फीसदी पर ठहर गई, जिसने चीन को सबसे कम प्रजनन दर वाले देशों में शामिल कर दिया।

नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की स्थायी समिति ने संशोधित जनसंख्या एवं परिवार नियोजन कानून को पारित कर दिया जिसमें चीनी दंपत्तियों को तीन बच्चे तक पैदा करने की अनुमति दी गयी है। चीन में बढ़ती महंगाई के कारण दंपति कम बच्चे पैदा कर रहे हैं और इन चिंताओं से निपटने के लिए कानून में अधिक सामाजिक और आर्थिक सहयोग के उपाय भी किए गए हैं।

सरकारी समाचार पत्र ‘चाइना डेली’ के अनुसार, नए कानून में बच्चों के पालन-पोषण और उनकी शिक्षा का खर्च कम करने के साथ ही परिवार का बोझ कम करने के लिए वित्त, कर, बीमा, शिक्षा, आवासीय और रोजगार संबंधी सहयोगात्मक कदम उठाए जाएंगे। इस साल मई में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने दो बच्चों की अपनी सख्त नीति में छूट देते हुए सभी दंपतियों को तीन तक बच्चे पैदा करने की अनुमति दी थी। चीन ने दशकों पुरानी एक बच्चे की नीति को रद्द करते हुए 2015 में सभी दंपतियों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी थी। नीति निर्माताओं ने देश में जनसांख्यिकीय संकट से निपटने के लिए एक बच्चे की नीति को जिम्मेदार ठहराया था।

 

 

 

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