कविता :- जब भारत आज़ाद हुआ था
जब भारत आज़ाद हुआ था| आजादी का राज हुआ था|| वीरों ने क़ुरबानी दी थी| तब भारत आज़ाद हुआ था|| भगत सिंह ने फांसी ली थी| इंदिरा का जनाज़ा उठा…
जब भारत आज़ाद हुआ था| आजादी का राज हुआ था|| वीरों ने क़ुरबानी दी थी| तब भारत आज़ाद हुआ था|| भगत सिंह ने फांसी ली थी| इंदिरा का जनाज़ा उठा…
ऑफिस की खिड़की से जब देखा मैने,मौसम की पहली बरसात को।। काले बादल के गरज पे नाचती, बूँदों की बारात को।। एक बच्चा मुझसे निकालकर भागा था भीगने बाहर। रोका…
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। जानता…
काश,जिंदगी सचमुच किताब होती पढ़ सकता मैं कि आगे क्या होगा? क्या पाऊँगा मैं और क्या दिल खोयेगा? कब थोड़ी खुशी मिलेगी, कब दिल रोयेगा? काश जिदंगी सचमुच किताब होती,…
बारिश जब आती है, ढेरो खुशिया लाती है, प्यासी धरती की प्यास बुझाती है, मिटटी की भीनी सुगंध फैलाती है, बारिश जब आती है, ढेरो खुशिया लाती है। भीषण गर्मी…
प्रेम और त्याग के धागे से जुड़ा, एक विश्वास है दोस्ती। दुनिया के सभी रिश्तों में, सबसे खास है दोस्ती। दिलों को दिलों से जोड़ने वाला, एक प्यारा अहसास है…
पुराने शहर की इस छत पर पूरे चाँद की रात याद आ रही है वर्षों पहले की जंगल की एक रात जब चाँद के नीचे जंगल पुकार रहे थे जंगल…
क्या खबर तुमको दोस्ती क्या हैं, ये रोशनी भी हैं और अँधेरा भी हैं, दोस्ती एक हसीन ख़्वाब भी हैं, पास से देखो तो शराब भी हैं। दुःख मिलने पर…
धधक रही है आग उड़ा रही है राख पूरी दुनिया में फैलने को बेकरार है ये आग जो भी इस आग के सामने आएगा ख़ाक में मिल जाएगा मामूली नहीं…
संभल जाओ ऐ दुनिया वालो वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही ! रब करता आगाह हर पल प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !! लगा बारूद पहाड़, पर्वत उड़ाए स्थल…
न एक हाथ शस्त्र हो न हाथ एक अस्त्र हो न अन्न वीर वस्त्र हो हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो रहे समक्ष हिम-शिखर तुम्हारा प्रण उठे निखर…
यह सच है :— तुमने जो दिया दान दान वह, हिंदी के हित का अभिमान वह, जनता का जन-ताका ज्ञान वह, सच्चा कल्याण वह अथच है— यह सच है! बार…
घर में किलकारी गूंजी आज फिर कोई आया है स्वर्ग से पहले क्या कम भीड़ है जमीन पर जो एक ओर पहुंच गया मरने के वास्ते खुशियाँ पसरी हैं चारों…
दर्द के तपते माथे पर शीतल ठंडक सी मेरी बेटी मैं ओढा देना चाहती हूँ तुम्हे अपने अनुभवों की चादर माथे पर देते हुए एक स्नेहिल बोसा मैं चुपके से…
अबकी बार लौटा तो बृहत्तर लौटूंगा चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं कमर में बांधें लोहे की पूँछे नहीं जगह दूंगा साथ चल रहे लोगों को तरेर कर न देखूंगा…