न्यूयॉर्क के एक संस्थान में 12 रेक्टल कैंसर के मरीजों पर किए गए ट्रायल के चमत्कारिक परिणाम देखने को मिले हैं। ये सभी मरीज पूरी तरह ठीक हो गए हैं. इन्हें खास तरह की दवा दी गई थी।
कैंसर के इतिहास में चमत्कार का दावा करने वाली न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट वाकई में हैरान करने वाली है। इसमें दावा किया गया है कि रेक्टल कैंसर के 12 मरीज बिना किसी सर्जरी या कीमोथेरेपी के ठीक हो गए। उन्हें मात्र एक दवा दी जा रही थी। यह अध्ययन मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर, न्यूयॉर्क के डॉक्टरों ने किया था। स्टडी में कहा गया है कि डोस्टरलिमैब नाम की मोनोक्लोनल एंटीबॉडी मरीजों को तीसरे हफ्ते दी गई। यह कोर्स 6 महीने तक चला और इसके बाद मरीज पूरी तरह ठीक हो गए। आइए जानते हैं कि यह इलाज कैसे किया गया और भारत में ऐसे इलाज के लिए क्या चुनौतियां हैं।
क्या कहता है अध्ययन?
स्टडी में कहा गया है कि बिना किसी सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के कैंसर का इलाज किया गया। इससे एक खास तरह के कैंसर के मरीज पूरी तरह ठीक हो गए। इन मरीजों को 6 से 25 महीने तक दवाई दी गई। इसमें यह भी कहा गया है कि फॉलोअप के दौरान किसी में दोबारा लक्षण नहीं दिखायी दिए। इस दवा का असर भी बहुत तेजी से दिखा। शुरुआत के 9 हफ्ते में भी लोग 81 फीसदी ठीक हो गए थे।
किस तरह का कैंसर, कैसे किया गया इलाज?
कोलोरेक्टल, गैस्ट्रोइंटेस्टिनल और एंडोमीट्रियल कैंसर में मिसमैच रिपेयर डिफिसिएंट बहुत ही साधारण होता है। इसकी वजह से मरीज में ऐसे जीन कम हो जाते हैं जो कि डीएनए में पाए जाते हैं और कोशिकाएं बनाने में काम आते हैं। इम्यूनोथेरेपी पीडी1 ब्लॉकेड से संबंधित है जिसे आजकल कीमोथेरेपी से ज्यादा पसंद किया जाने लगा है।
एम्स दिल्ली में रेडियोथेरेपी के प्रोफेसर रहे पीके जुल्का ने बताया, डीएनए में विसंगति की वजह से कैंसर होता है। मान लीजिए कि इम्यून सिस्टम एक कार है तो पीडी1 इसमें ब्रेक की तरह काम करता है। जब पीडी1 ब्लॉकेड दिया जाता है तो ब्रेक खुल जाते हैं और कैंसर की ग्रोथ रुक जाती है। भारत में भी कुछ पीडी1 ब्लॉकेड मौजूद हैं, हालांकि इस स्टडी में इन ब्लॉकेड का इस्तेमाल नहीं किया गया था।
भारत में ऐसा इलाज करने में क्या है चुनौती
भारत में इस तरह का इलाज संभव होने में सबसे बड़ा रोड़ा इसकी कीमत हो सकती है। एम्स दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. एमडी रे के मुताबिक ऐसे मरीजों का इलाज कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से भी हो सकता है। 10 से 15 फीसदी मरीजों को सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है। इम्यूनोथेरेपी के साथ समस्या यह है कि ये बहुत महंगी हैं और भारत के आम लोगों के लिए दुर्लभ हैं।