बीबी लाल, पूरा नाम ब्रज बासी लाल। एक ऐसा नाम, जिसने बतौर पुरातत्ववेत्ता कई रहस्यों से पर्दा हटाया। वहीं अपने शोध और काम से बीबी लाल ने एक अलग तरह का मुकाम हासिल किया और कमाल किया था।

बीबी लाल, पूरा नाम ब्रज बासी लाल। एक ऐसा नाम, जिसने बतौर पुरातत्ववेत्ता कई रहस्यों से पर्दा हटाया। वहीं अपने शोध और काम से उन्होंने एक अलग मुकाम हासिल किया। शनिवार को प्रोफेसर बीबी लाल का निधन हो गया। यह उनका ही काम था, जिसकी बदौलत अयोध्या में राम मंदिर होने की बात साबित हुई और जिसे हाई कोर्ट ने भी माना। सौ साल से भी ज्यादा उम्र होने के बावजूद वह लगातार एक्टिव थे। प्रो. लाल ने हस्तिनापुर, शिशुपालगढ़, पुराना किला, कालिबंगन सहित कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई की। एक नजर बीबी लाल की जिंदगी और कुछ खास काम पर…

लिखीं कई शानदार किताबें
दो मई, 1921 को पैदा हुए बीबी लाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में मास्टर्स किया। इसके बाद वह 1943 में वह पहुंचे लक्षशिला, जहां उस वक्त के जाने-माने ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट मोर्टीमर व्हीलर के अंडर में ट्रेनिंग शुरू की। अपने पूरे कार्यकाल में बीबी लाल ने 50 से ज्यादा किताबों पर काम किया। इसके अलावा उनके 150 से ज्यादा शोध पत्र देश और दुनिया के जॉर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं। बीबी लाल की कुछ खास किताबों में 2002 में प्रकाशित  ‘द सरस्वती फ्लोज ऑन: द कांटीन्यूटी ऑफ इंडियन कल्चर ’ और ‘रामा, हिज हिस्ट्रीसिटी, मंदिर एंड सेतु: एविडेंस ऑफ लिट्रेचर, आर्कियोलॉजी एंड अदर साइंसेस ’ 2008 में प्रकाशित हुई थी।

महाभारत साइट्स पर काम
साल 1950 से 1952 के बीच बीबी लाल ने महाभारत से जुड़ी विभिन्न साइट्स पर काम किया है। इस दौरान उन्होंने ऊपरी गंगा दोआब आदि में ढेरों पेंटेड ग्रे वेयर साइट्स ढूंढीं। करीब 20 साल बाद 1975 में उन्होंने एक शोधपत्र लिखा था। इस का शीर्षक था, ‘इन सर्च ऑफ इंडियाज ट्रेडिशनल पास्ट: लाइट फ्रॉम द एग्केवेशंस ऐट हस्तिनापुर एंड अयोध्या’। इसमें उन्होंने अपनी फाइंडिंग्स को समराइज करते हुए लिखा था कि जो पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं, उनसे यह साबित होता है कि यहां पर महाभारत की कहानी का आधार है।

रामजन्मभूमि से जुड़ी खोज
महाभारत की तरह ही बीबी लाल ने रामायण की साइट्स पर भी खोज की थी। उन्होंने साल 1975 में ‘आर्कियोलॉजी ऑफ द रामायण साइट्स’ प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। इसकी फंडिंग आर्कियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया, जिवाजी यूनिवर्सिटी ग्वालियर और उत्तर प्रदेश सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा की गई थी। इस प्रोजेक्ट का शुभारंभ 31 मार्च, 1975 को अयोध्या में हुआ था। इस दौरान अयोध्या, भारद्वाज आश्रम, नंदीग्राम, चित्रकूट और श्रृंगवेरपुर आदि जगहों की जांच की गई थी। उनके इसी शोध के आधार पर अयोध्या में राम मंदिर होने की बात स्थापित हुई थी।

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