जीई रोड पर प्रस्तावित सिलकसेल इंस्टीट्यूट ऑफ छत्तीसगढ़ की बिल्डिंग की ड्राइंग डिजाइन को लेकर बड़ी गड़बड़ी फूटी है। पीडब्ल्यूडी ने जिस कंपनी को इंस्टीट्यूट भवन का ड्राइंग डिजाइन बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी, उस कंपनी ने आधी अधूरी और गड़बड़ डिजाइन बनाकर दे दी। 5 की जगह उसने 3 मंजिला भवन का ही डिजाइन बनाया है। न बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए जगह बनाई न इमरजेंसी में आने वाले मरीजों के लिए जगह तय की। इसके बावजूद पीडब्ल्यूडी के अफसरों ने कंपनी को ड्राइंग डिजाइन बनाने का 80 लाख से ज्यादा का भुगतान कर दिया। हद तो ये है कि उसी आधी अधूरी ड्राइंग डिजाइन के आधार पर इंस्टीट्यूट भवन का काम भी चालू कर दिया गया था। अस्पताल के विशेषज्ञों ने जब डिजाइन देखी तो वे हैरान रह गए, क्योंकि ड्राइंग डिजाइन में ही 22 डिसमिल जमीन कम कर दी गई थी। डाक्टरों ने आनन-फानन में काम रुकवाया। अब अधूरी डिजाइन को लेकर खासा बवाल मचा हुआ है। पीडब्ल्यूडी के अफसर इस प्रयास में हैं कि किसी तरह 80 लाख की रिकवरी हो जाए। इसे लेकर डिजाइन बनाने का ठेका लेनी वाली कंपनी के जिम्मेदारों के साथ बैठकें भी हो चुकी है। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम में पीडब्ल्यूडी के अफसरों की भूमिका भी जांच के घेरे में है। अफसरों ने डिजाइन बनने के बाद उसका भुगतान करने के पहले सिकलसेल यूनिट के अफसरों को दिखाया भी नहीं था। इंस्टीट्यूट में इस तरह होगा मरीजों का इलाज पीडब्ल्यूडी के अफसरों ने बताया कि सिकलसेल की नई बिल्डिंग पांच मंजिला बनाने का प्लान है। ग्राउंड फ्लोर पर ओपीडी रहेगी। यहां मरीजों का इलाज किया जाएगा। सभी डॉक्टरों के कक्ष भी यहीं होंगे, ताकि वे ग्राउंड फ्लोर पर ही चेकअप कर सकें। इसके अलावा पैथोलॉजी लैब, कोऑर्डिनेटर रूम, दवा स्टोर भी यहीं रहेगा। दूसरे तल में रिसर्च सेंटर बनना है। यहां बीमारी के कारणों और बचाव के उपायों पर रिसर्च करेंगे। तीसरे तल में कांफ्रेंस रूम, ऑडिटोरियम, वीडियो कांफ्रेंसिंग रूम बनाया जाना है। चौथे तल में रिहैबिलिटेशन सेंटर और पांचवें में टीचिंग ब्लॉक के साथ बोन मैरो ट्रांसप्लांट और इमरजेंसी में मरीजों को भर्ती रखने के लिए वार्ड भी बनाना है। इंस्टीट्यूट बनने से सिलकसेल के मरीजों के इलाज व रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा। इससे सिलकसेल के मरीजों को राहत मिलेगी। डिजाइन में ये गड़बड़ियां बिल्डिंग बनाने के लिए 48 करोड़ का बजट स्वीकृत राज्य में 2 लाख से ज्यादा सिकलसेल के मरीज हैं। इसके बावजूद अंबेडकर अस्पताल की सिकलसेल यूनिट में इलाज की कोई सुविधा नहीं है। दो साल पहले तक 70 से ज्यादा मरीज आते थे। न इलाज हो रहा न दवाएं पूरी मिल रही, इस वजह से मरीजों की संख्या लगभग आधी हो चुकी है। इलाज का सिस्टम सुधारने के लिए ही यहां 48 करोड़ का बजट इंस्टीट्यूट के लिए स्वीकृत किया गया था। अंबेडकर के सिकलिन सेंटर में इलाज की स्थिति {लीवर-किडनी की जांच का सिस्टम बंद {सामान्य खून की मात्रा की जांच भी नहीं हो रही। {आरटीपीसीआर मशीन भी अर्से से बंद {7 करोड़ हर साल मिल रहा बजट {4 करोड़ सैलेरी में खर्च हो रहा {1 करोड़ ही मरीजों के इलाज पर खर्च कर रहे {4 बिस्तर का डे केयर सिस्टम बंद। ड्राइंग डिजाइन में गड़बड़ी आने के कारण सिलकसेल की बिल्डिंग के निर्माण पर रोक लगा दी गई थी। नई ड्राइंग डिजाइन बन जाएगी तो काम शुरू होगा।- डॉ. उषा जोशी, एचओडी, फ्रेंको लॉजी सिलकसेल की नई ड्राइंग डिजाइन बन रही है उसके बाद काम शुरू होगा। ड्राइंग डिजाइन कंपनी को पेमेंट हुआ है या नहीं इसकी जानकारी संबंधित अफसर ही बता पाएंगे मैं कुछ भी नहीं कह पाऊंगा।- डीके नेताम, एससी रायपुर

By

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *