साल के वृक्ष  नैसर्गिक रूप से उगते हैं। बीते दो दशक में साल के लाखों पेड़ काटे जा चुके हैं। अब उसके बदले रोपण का काम किया जा रहा है  पर रोपण की सफलता की दर कम है। साल का वैज्ञानिक नाम शोरिया रोबस्टा है। यह डिप्टेरोकापैसी कुल का सदस्य है।

साल का वृक्ष 500 साल तक जीवित रहकर आदिवासियों का जीवन संवारता है

इससे इमारती व जलाऊ लकड़ी, साल का बीज, धूप, दोना-पत्तल बनाने के लिए उपयोगी पत्ते, दातून व कई तरह की औषधियां मिलती हैं। साल वृक्ष के नीचे एक विशेष तरह का मशरूम मिलता है जिसे बस्तर में बोड़ा कहा जाता है। इसकी सब्जी राजसी मानी जाती है। यह इतना उपयोगी वृक्ष है कि जिस व्यक्ति की निजी भूमि पर यह होता है वह गौरवान्वित महसूस करता है।

बस्तर वन वृत्त में करीब दो हजार किमी क्षेत्र में साल के वन थे। बढ़ती जनसंख्या, गांवों व शहरों का विकास व अतिक्रमण की वजह से इसका रकबा 895.076 वर्ग किमी रह गया है। वनाधिकार पट्टे के लिए वनों में अतिक्रमण की बाढ़ आ गई है। इससे साल वनों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।

आदिवासी दातुन के लिए भी इसकी टहनियों का उपयोग करते हैं

साल के नए पौधे विकसित नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि सरई की दातौन का उपयोग बस्तर में सभी करते हैं। साप्ताहिक हाट बाजार में दातून बेची जाती है। ग्रामीण प्रतिदिन हजारों साल की शाखाओं को काटकर बेचने ले जाते हैं। पतली शाखाओं के कटने से पौधों का विकास नहीं हो पाता है।

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