घर में किलकारी गूंजी
आज फिर कोई आया है स्वर्ग से
पहले क्या कम भीड़ है जमीन पर
जो एक ओर पहुंच गया मरने के वास्ते
खुशियाँ पसरी हैं चारों ओर
बधाई बधाई की आवाजें आ रही है
नन्ही मासूम आँखे देख रही है इधर उधर
दानवों ने क्यूं घेर रखा है चारों ओर से
एक काया हर वक्त परछाई बनी रहती है
मुझे हर हाल में जिन्दा रखने के लिये
खो देती है अपना चैनो अमन औलाद की खातिर
माँ ही तो सचमुच का भगवान होती है
अभी से सारी सारी रात नींद ना आती
आगे तो पता नही क्या क्या होगा
परेशान माँ ने डाट दिया तंग होकर
जिन्दगी के पहले कडवे सच मिल रहे है
चलो आज घुटनों पर शहर घुमा जाये
मेरे दाता ये दुनिया कितनी बड़ी है
सारा दिन घूम कर इधर से उधर
आखिर में थककर नींद आ जाती है
आज पहली बार खुद के पैरों पर बाहर आये हैं
जाने कहाँ भाग रहा है सारा शहर
किसी के पास वक्त नही एक पल ठहरने का
घर वापिस चलो माँ को चिंता हो रही होगी
आज व्यस्क हो चूका हूँ
बचपन जवानी बुढ़ापा सब समझ आ रहा है
पड़ोस से किसी बुजुर्ग के मरने की खबर आई
आदमी धरती पर आता है सिर्फ मरने के लिये
–नीरज रतन बंसल ‘पत्थर‘