आज की कविता है “असाधारण”

जिसके कवि श्री ओम भारती जी है

 

साधारण कवि हम, साधारण भाषाएँ
सुख-दुख इच्छाएँ और आशाएँ साधारण
साधारण सपने और जीवन और सोच
अनुभव, संवेदन और शिल्प भी साधारण
साधा नहीं हमने, करते भर आये रण

साधारण पत्रिकाएँ छपने को साधारण लिखा अपना
साधारणतया कोई पारिश्रमिक नहीं
और कभी हुआ भी तो साधारण
साधारणतः कोई आलोचक-आस्वादक-समीक्षक बड़ा नहीं
साधारण से पाठक से कभी कोई साधारण पोस्टकार्ड
साधारण आयोजन, साधारण उपस्थिती में
साधारण काव्य-पाठ हमारा, साधारण सराहना

हम नही असाधारण नागरिक
असाधारण पद पर बैठे अफ़सर भी नहीं हम
साधारण लिखे पर साधारण पुरस्कार
ले-देकर असाधारण सफल जो
असाधारण विषय जिनके
असाधारण अभियान
कि धारण किए रह उन्हे माथे पर साधारण
टीले से सगरमाथा बने तने
साधारण
तामें सने, धन्य हैं असाधारण

सौजन्य : कविता कोष

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