भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा जो सोमवार से शुरू हुई थी । रथयात्रा भारत और विदेशों में सबसे प्रसिद्ध वैष्णव अनुष्ठानों में से एक है, भक्तों में रथयात्रा को लेकर हमेशा उत्साह बना रहता है।
हमेशा रथयात्रा के दौरान भक्तगण मंदिर परिसर में आते हैं, इस साल कोरोनोवायरस और लगे प्रतिबंधों की वजह से मंदिर परिसर में भक्तो का प्रवेश निषेध है इसके अलावा, जुलूस में भाग लेने वाले रथ खींचने वालों का आरटी-पीसीआर परीक्षण किया गया है, और उन्हें वैक्सीन भी लगाया गया है पूरी यात्रा को व्यवस्थित करने के लिए जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने पुलिसकर्मियों के अलावा करीब 1,000 अधिकारियों को तैनात किया है।
पुरी का प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर भक्तों के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह भारत के चारधाम तीर्थ स्थलों में से एक है, और यह वार्षिक रथ उत्सव या रथ यात्रा के लिए भी प्रसिद्ध है। यदि विभिन्न किंवदंतियों पर विश्वास किया जाए, तो राजा इंद्रद्युम्न ने इस पवित्र मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के आशीर्वाद के बाद किया
इन सभी तथ्यों के अलावा, पुरी में जगन्नाथ मंदिर कुछ ऐसे रहस्यों के लिए भी जाना जाता है जो किसी भी वैज्ञानिक व्याख्या की अवहेलना करते हैं। लोगों का मानना है कि ये रहस्य वास्तव में भगवान जगन्नाथजी का आशीर्वाद हैं।
मंदिर के ऊपर लगा पताका हमेशा हवा के विपरीत दिशा में उड़ता है। विपरीत दिशा में उड़ता पताका आज भी वैज्ञानिक तर्क से परे है
मंदिर के शीर्ष पर चक्र है चक्र का वजन लगभग एक टन है। चक्र की सबसे दिलचस्प बात यह है कि आप इस चक्र को पुरी शहर के किसी भी कोने से देख सकते हैं। चक्र की स्थापना के पीछे की इंजीनियरिंग आज भी एक रहस्य है आपका स्थान चाहे जो भी हो, आप हमेशा महसूस कर सकते हैं कि चक्र आपकी ओर है
आपको जानकर हैरानी होगी कि मंदिर के ऊपर कोई पक्षी या विमान नहीं उड़ता है । ऐसा भारत के किसी अन्य मंदिर में नहीं है। जगन्नाथ जी का मंदिर वास्तव में एक नो-फ्लाई जोन है, जिसे किसी राज्य शक्ति द्वारा नहीं, बल्कि किसी दैवीय शक्ति द्वारा घोषित किया गया है। नो फ्लाई जोन का भी स्पष्टीकरण नहीं है। यह अभी भी एक रहस्य बना हुआ है।
मंदिर की संरचना ऐसी है कि दिन के किसी भी समय इसकी कोई छाया नहीं पड़ती है। अब आप इसे इंजीनियरिंग चमत्कार कहिये या दैवीय शक्ति
जगन्नाथ मंदिर में चार दरवाजे हैं, और सिंहद्वारम मंदिर के प्रवेश का मुख्य द्वार है। सिंधद्वारम से प्रवेश करने से पहले समुद्र की लहरों की आवाज़ स्पष्ट रूप से सुनाई देती है पर जैसे ही सिंहद्वारम से गुजरे, लहरों की आवाज़ नहीं सुनाई देगी। इतना ही नहीं जब तक आप मंदिर के अंदर होंगे तब तक आपको लहरों की आवाज नहीं सुनाई देगी।
पताका रोज बदला जाता है यह प्रथा 1800 वर्षों से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि अगर ऐसा कभी न करे तो मंदिर 18 वर्षों तक बंद होजायेगा ।
जगन्नाथ मंदिर में कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता है। रिकॉर्ड बताते हैं कि 2,000 से 20,000 भक्त मंदिर में प्रतिदिन आते हैं। मंदिर में बनने वाले प्रसाद की मात्रा हमेशा एक समान रहती है। प्रसादम कभी भी व्यर्थ नहीं जाता न ही किसी भी दिन कम पड़ता है ।
लकड़ी का उपयोग करके प्रसादम को बनाया जाता है प्रसादम बनने में 7 बर्तनों का उपयोग किया जाता है बर्तनो को एक के ऊपर एक रखा जाता है। पर आश्चर्य करने वाली बात ये है कि सबसे ऊपर वाले बर्तन ,सबसे पहले पकता है , उसके बाद नीचे के बर्तनों ।