यूक्रेन पर रूस के हमले के करीब तीन महीने बीतने वाले हैं और यह जंग किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंच पाई है। इस बीच रूस के लिए एक और चुनौती उसके पड़ोसी देश स्वीडन और फिनलैंड बढ़ाने वाले हैं।

यूक्रेन पर रूस के हमले के करीब तीन महीने बीतने वाले हैं और यह जंग किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंच पाई है। इस बीच रूस के लिए एक और चुनौती स्वीडन और फिनलैंड बढ़ाने वाले हैं। रूस के साथ सीमा साझा करने वाले दोनों देशों ने नाटो की सदस्यता लेने का ऐलान कर दिया है। अब दोनों देशों की संसद इस संबंध में प्रस्ताव पारित करेगी और फिर नाटो संगठन के समक्ष आवेदन पेश किया जाएगा। कहा जा रहा है कि यह पूरी प्रक्रिया दो सप्ताह में पूरी हो सकती है। इस बीच रूस ने स्वीडन और फिनलैंड के प्लान को लेकर धमकी दी है कि यह गलती होगी और उसके परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे।

माना जा रहा है कि रूस की धमकी के चलते अब नाटो दोनों देशों को शामिल करने में तेजी लाएगा ताकि किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई में उन्हें मदद कर सके। बता दें कि नाटो संगठन के तहत सभी देश एक-दूसरे को सुरक्षा की गारंटी देते हैं कि किसी दूसरी ताकत की ओर से यदि किसी एक पर भी अटैक किया जाता है तो सभी मिलकर जवाब देंगे। ऐसे में फिनलैंड और स्वीडन तक नाटो का पहुंचना रूस के लिए बड़ा सिरदर्द होगा। इसकी वजह यह है कि स्वीडन और फिनलैंड दोनों ही रूस के साथ सीमा शेयर करते हैं। बता दें कि यूक्रेन पर अटैक भी रूस ने इसी आशंका में किया था कि वह कहीं नाटो में शामिल न हो जाए, जिसे लेकर रूस ऐतराज जताता रहा है।

रूस के 8 पड़ोसी देश होंगे नाटो का हिस्सा

ऐसे में यह आशंका जताई जा रही है कि स्वीडन और फिनलैंड के नाटो में शामिल होने पर रूस तीखी प्रतिक्रिया दे सकता है। साफ है कि यूरोप में आने वाले वक्त में महाभारत छिड़ सकती है और यह इलाका रूस और अमेरिका के बीच शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बन सकता है। दरअसल रूस के लिए स्वीडन और फिनलैंड का नाटो में एंट्री करना बड़ा सिरदर्द हो सकता है। इसकी वजह यह है कि उसके साथ जमीनी सीमा शेयर करने वाले एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, नॉर्वे और पोलैंड पहले ही नाटो का हिस्सा हैं। इसके अलावा समुद्री सीमा शेयर करने वाला तुर्की भी नाटो का हिस्सा है। स्वीडन भी रूस के साथ समुद्री सीमा साझा करता है।

क्या है किसी भी देश के लिए नाटो का हिस्सा बनने की प्रक्रिया

यदि कोई भी देश नाटो का हिस्सा बनना चाहता है तो उसे औपचारिक आवेदन देना पड़ता है। यह लेटर सरकार की ओर से सौंपा जाता है। इसके बाद मौजूदा नाटो सदस्यों की मीटिंग होती है और उसमें फैसला लिया जाता है कि आवेदन करने वाले देश को एंट्री दी जाए या नहीं। सभी देशों की सहमति पर ही एंट्री मिलती है क्योंकि ग्रुप के प्रत्येक सदस्य के पास वीटो पावर है। खासतौर पर यह आकलन किया जाता है कि आवेदन करने वाला देश कैसे संगठन की सुरक्षा में योगदान दे सकता है। स्वीडन और फिनलैंड को लेकर माना जा रहा है कि उनसे किसी देश को ऐतराज नहीं होगा। हालांकि तुर्की ने इस पर आपत्ति जाहिर की थी।

तुर्की के ऐतराज पर अमेरिका मनाने में जुटा

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल किए जाने का विरोध किया था। उनका कहना था कि ये दोनों देश उसके यहां सक्रिय उग्रवादी कुर्दिश संगठन का समर्थन करते रहे हैं। ऐसे में इनकी एंट्री को मंजूरी नहीं दी जा सकती। हालांकि उन्होंने वीटो पावर के इस्तेमाल की बात नहीं की है। ऐसे में माना जा रहा है कि उन्हें मना लिया जाएगा। गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी उनकी सहमति का भरोसा जताया है और सभी पहलुओं को दूर करने की बात कही है।

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