राजधानी के सबसे बड़े आउटडोर स्टेडियम की बदहाली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मैदान में खेल तो दूर खिलाड़ी, युवा या बुजुर्ग यहां दौड़ने या टहलने तक नहीं आते हैं। देर रात इस स्टेडियम में जुआरियों और शराबियों का कब्जा हो जाता है। करीब दो साल से इस मैदान में खेल बंद है। पवेलियन की सीढ़ियां टूट गई है। मैदान में कई जगहों पर गड्ढे हो गए हैं। उबड़-खाबड़ मैदान के कई हिस्सों में पैदल चलना भी मुश्किल है। स्टेडियम के कुछ हिस्से में शहर का कचरा भी लाकर डंप किया जा रहा है। आउटडोर स्टेडियम से लगकर ही इंडोर स्टेडियम है। इसका मेंटेनेंस अच्छे तरीके से किया जा रहा है, लेकिन आउटडोर स्टेडियम को बदहाल करके छोड़ दिया गया है। शुरूआत में दो विभागों के बीच फंसने की वजह से आउटडोर स्टेडियम का और बुरा हाल हो गया है। दरअसल स्टेडियम में खेल के लिए इसे साईं सेंटर रायपुर को सौंपा गया था। लेकिन स्टेडियम के मेंटनेंस का काम निगम के पास ही रहा। बाद में पूरी तरह से स्टेडियम को साईं सेंटर को सौंप दिया गया। अभी मेंटेनेंस नहीं होने की वजह से स्टेडियम खराब होते गया। अभी भी स्टेडियम में किसी खेल का आयोजन करना है तो साईं सेंटर से अनुमति लेनी होती है। दो साल पहले मोटरसाइकिल रेस कराई गई, आज तक मैदान समतल नहीं किया आउटडोर स्टेडियम में करीब दो साल पर राष्ट्रीय स्तर पर मोटरसाइकिल रेस कराई गई थी। इसमें पेशेवर चालकों ने खतरनाक स्टंट किए थे। इस आयोजन को कराने के लिए मैदान को कई जगह से डिस्टर्ब किया गया था। कहीं मिट्टी डालकर उठाया गया था तो कहीं मिट्टी खोदकर गड्ढे किए गए थे। आयोजन खत्म होने के बाद आज तक इस मैदान को समतल तक नहीं किया गया। अभी भी मैदान कई जगहों से उबड़-खाबड़ है। कुछ खेल संगठनों ने इसकी शिकायत भी की। लेकिन सभी की बात अनसुनी कर दी गई है। सुभाष स्टेडियम को भी छोटा कर दिया वहां खेल कम, राजनीति प्रोग्राम ज्यादा
शहर के सुभाष स्टेडियम को भी पहले से बेहद छोटा कर दिया गया है। निगम ने स्टेडियम की जमीन के एक बड़े हिस्से में जिम बना दिया है। जिसे कुछ निजी लोगों को सालाना शुल्क के आधार पर लीज में दिया गया है। इतना ही नहीं मैदान की ही जमीन पर दुकानें भी बना दी गई है। चौंकाने वाली बात यह है कि करीब पांच साल पहले बनीं यह दुकानें आज तक नहीं बिकी हैं। अधिकतर दुकानें जर्जर हो गए हैं। दुकानों के शटर तक टूट गए हैं। निगम अफसरों का दावा था कि दुकानों के बिकने से निगम को बड़ा राजस्व मिलेगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। लेकिन दुकानों के बनने की वजह से स्टेडियम छोटा हो गया। एक दर्जन से ज्यादा बार टेंडर निकालकर दुकानों को बेचने की कोशिश की जा चुकी है। लेकिन सब फेल रही। राजधानी के बाकी के खेल मैदानों में भी केवल मेले ही लग रहे
राजधानी के बाकी खेल मैदानों का भी बुरा हाल है। बीटीआई ग्राउंड शंकरनगर, रांवाभाठा और गॉस मेमोरियल ग्राउंड आकाशवाणी चौक में सालभर कोई खेल आयोजन नहीं किया जाता है। लेकिन इन मैदानों में स्कल-कॉलेज की हर छुट्टी में मेले में जरूर लग रहे हैं। अभी भी गॉस मेमोरियल मैदान और रांवाभाठा में बड़े मेले लगे हुए हैं। मेला लगाने वाले इन मैदानों को महीनों तक के लिए बुक कर लेते हैं। क्योंकि मेला लगाने और उसका सामान लगाने में 15 से 20 दिन लगते ही हैं। जितने दिन मेला लगता है वहां कोई खेल नहीं होता। बच्चों और युवाओं को घरों के सामने ही खेलने की मजबूरी रहती है। कई बार इन खेल मैदानों को बचाने के लिए आंदोलन भी हो चुके हैं। लेकिन निगम वाले कभी इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। समाधान – जो भी कमियां हैं जल्द दूर कर देंगे आउटडोर स्टेडियम में जो भी कमियां हैं उसे जल्द से जल्द दूर कर दिया जाएगा। खिलाड़ियों के लिए स्टेडियम में सभी जरूरी सुविधाएं दी जाएंगी। अगर कोई कचरा डंप कर रहा है तो उस पर कार्रवाई भी करेंगे।
कुशलचंद्र त्रिपाठी, साईं एसटीसी सेंटर इंचार्ज