रायबरेली की जनता के नाम अपने खुले ख़त में सोनिया गांधी ने लिखा, “अपनी सास और जीवनसाथी को खोने के बाद… मैं आपके पास आई और आपने मेरे लिए बांहें फैला दीं… पिछले दो चुनावों में भी आप चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहे… मैं इसे कभी नहीं भूल सकती…”
नई दिल्ली:
कांग्रेस की दिग्गज नेता सोनिया गांधी का लोकसभा से राज्यसभा में चले जाना, यानी उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट का प्रतिनिधित्व करने के स्थान पर राजस्थान से राज्यसभा में प्रवेश करना, एक ऐसी पार्टी के नेतृत्व में बदलाव का संकेत देने वाला माना जा रहा था, जो बहुतों को लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अपनी प्रासंगिकता के लिए संघर्ष करती नज़र आ रही है.
संसद के निचले सदन में पिछले 25 साल से मौजूद दिग्गज राजनेता और संसद के भीतर और बाहर कांग्रेस का चेहरा बनी रहीं सोनिया गांधी ने इसी सप्ताह बताया कि वह रायबरेली से फिर चुनाव नहीं लड़ेंगी, जबकि सोनिया के ससुर फ़ीरोज़ गांधी और सोनिया की सास भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, और इसे कांग्रेस का मज़बूत गढ़ माना जाता रहा है.
सवाल यह है कि रायबरेली से परिवार को कौन-सा सदस्य मैदान में उतरेगा.
सबसे ज़्यादा प्रचलित अटकल यह है कि सोनिया गांधी की पुत्री प्रियंका गांधी वाड्रा ही पार्टी की पसंद बनेंगी और उस सीट से चुनावी करियर शुरू करेंगी, जिसका प्रतिनिधित्व उनके दादा-दादी और मां करते रहे हैं. वैसे, भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और प्रियंका के चेहरे-मोहरे में आश्चर्यजनक समानता को मद्देनज़र रखते हुए यह विकल्प काफी अच्छा लगता है.
हालांकि प्रियंका इससे पहले भी चुनावी मैदान में उतरने की कगार तक पहुंची थीं. उन्हें रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाना सुरक्षित दांव लग तो सकता है, लेकिन BJP की स्मृति ईरानी के ज़ोरदार अभियान के चलते राहुल गांधी की अमेठी हार को भूलना नहीं चाहिए, और पार्टी को विचार ज़रूर करना चाहिए.
वैसे, अटकल यह भी हैं कि प्रियका को चुनाव तो लड़ाया जा सकता है, लेकिन रायबरेली सीट से नहीं. रायबरेली के बजाय वह वाराणसी सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबिल होने का विकल्प चुन सकती हैं.
अतीत में कई बार यह सवाल प्रियंका से पूछा जाता रहा है, और वह बार-बार कहती रही हैं कि वह कांग्रेस के कहने पर कुछ भी करने के लिए तैयार हैं. और यह ऐसा जवाब है, जिससे कभी भी स्पष्ट उत्तर सामने नहीं आया, और अटकलें बनी रहीं.
प्रियंका के अलावा इकलौता संभावित विकल्प राहुल गांधी ही हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में केरल की वायनाड सीट से जीतकर अमेठी हार की भरपाई कर ली थी. हालांकि फिलहाल इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में व्यस्त राहुल इस समय उत्तर प्रदेश की अस्थिर राजनीति में लौटने के बारे में सोच भी रहे हैं.
अपने खुले ख़त में सोनिया गांधी ने रायबरेली सीट के साथ अपने परिवार और पार्टी के ‘घनिष्ठ संबंधों’ को रेखांकित किया, और कहा, “(इस सीट से) हमारे परिवार के संबंध बहुत पुराने हैं… आपने मेरे ससुर फ़ीरोज़ गांधी को जिताया… उनके बाद आपने मेरी सास इंदिरा गांधी को अपना बना लिया…”
सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों के साथ अपने भावनात्मक जुड़ाव को भी रेखांकित किया, और याद किया कि वह रायबरेली में अपने पति भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के कुछ ही साल बाद वहां चुनाव में उतरी थीं, और उससे पहले वह अपनी सास इंदिरा गांधी को भी खो चुकी थीं.
रायबरेली सीट से कांग्रेस सिर्फ़ तीन बार हारी है. पहली बार कांग्रेस को 1977 में यहां हार का सामना करना पड़ा था, जब आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में जनता ने यह सीट इंदिरा गांधी से छीनकर जनता पार्टी को दे दी थी. इसके बाद, BJP के अशोक सिंह ने 1996 और 1998 में लगातार चौंकाने वाली जीत हासिल की, जब इंदिरा गांधी के चचेरे भाई और बहन विक्रम कौल और दीपा कौल को मैदान में उतारा गया था.