प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन को देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने भी संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने स्थानीय भाषाओं को आगे ले जाने की अपील की। उन्होंने कहा, ‘हमें अदालतों में स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए। इससे देश के आम नागरिकों का न्याय व्यवस्था में भरोसा और मजबूत होगा।’

पीएम मोदी ने इस मौके पर कहा, ”2015 में हमने लगभग 1800 कानूनों की पहचान की जो अप्रासंगिक हो गए थे। इनमें से केंद्र ने 1450 ऐसे कानूनों को खत्म कर दिया। लेकिन, राज्यों द्वारा केवल 75 कानूनों को समाप्त किया गया है।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के सम्मेलन में कहा, ‘यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि देश में कानूनी शिक्षा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो।’ उन्होंने कहा, ‘इस ‘अमृत काल’ में हमारी दृष्टि एक ऐसी न्यायिक व्यवस्था के लिये होनी चाहिए, जहां न्याय आसानी से, त्वरित और सबके लिये उपलब्ध हो।’

वहीं, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, ”हमें ‘लक्ष्मण रेखा’ का ध्यान रखना चाहिए। अगर शासन कानून के मुताबिक हो तो न्यायपालिका कभी भी उसके रास्ते में नहीं आएगी। अगर नगरपालिकाएं, ग्राम पंचायतें कर्तव्यों का पालन करती हैं, अगर पुलिस ठीक से जांच करती है और अवैध हिरासत में प्रताड़ना बंद हो जाती है, तो लोगों को अदालतों की तरफ देखने की जरूरत नहीं है।”

सीजेआई एनवी रमना ने कहा, ”अदालत के फैसले सरकार द्वारा वर्षों से लागू नहीं किए जाते हैं। न्यायिक घोषणाओं के बावजूद जानबूझकर निष्क्रियता है जो देश के लिए अच्छा नहीं है। हालांकि नीति बनाना हमारा अधिकार क्षेत्र नहीं है, अगर कोई नागरिक अपनी शिकायत लेकर हमारे पास आता है तो अदालत मना नहीं कर सकती।”

उन्होंने कहा, ”संबंधित लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं को शामिल करते हुए गहन बहस और चर्चा के बाद कानून बनाया जाना चाहिए। अक्सर अधिकारियों के गैर-प्रदर्शन और विधायिकाओं की निष्क्रियता के कारण मुकदमेबाजी होती है जो टालने योग्य हैं।”

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