अया सोमवार को आए 7.8 तीव्रता के भूकंप से अनाथ हुए कई बच्चों में से एक है. संयुक्त राष्ट्र की बाल एजेंसी यूनिसेफ ने कहा कि वह उन बच्चों की निगरानी कर रही है, जिनके माता-पिता लापता हैं या मारे गए हैं.
नई दिल्ली:
भूकंप प्रभावित सीरिया में अपने घर के मलबे के नीचे एक बच्ची को जन्म देने के बाद उसकी मां मर गई. मगर, राहत और बचाव दल ने उसे बचा लिया. सीरिया के जेंडरिस शहर में बच्ची को उसकी मृत मां से बंधी हुई गर्भनाल के साथ बचाया गया था. विनाशकारी भूकंप में उसके पिता और भाई-बहनों की भी मृत्यु हो गई है. बच्ची का नाम अया रखा गया है. अया का अंग्रेजी में अर्थ होता है ‘चमत्कार’.
पिता के चाचा रखेंगे अपने पास
अया के पिता के चाचा का कहना है कि अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वह उसे घर ले जाएगा, क्योंकि बच्ची के परिवार के सभी सदस्यों की मृत्यु हो चुकी है. भूकंप में सलाह अल-बद्रान का अपना घर भी नष्ट हो चुका है और वह वर्तमान में अपने परिवार के साथ एक तंबू में रह रहे हैं. अया के रेस्क्यू का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. फुटेज में दिख रहा है कि एक व्यक्ति चार मंजिला इमारत के मलबे से धूल से ढके एक छोटे बच्चे को पकड़ता हुआ दौड़ता हुआ आ रहा है. एक दूसरा आदमी कड़ाके की ठंड में नवजात शिशु के लिए कंबल लेकर दौड़ता है, जबकि तीसरा उसे अस्पताल ले जाने के लिए कार के लिए चिल्लाता है.
डॉक्टर की पत्नी दूध पिला रही
वीडियो देखने के बाद हजारों लोगों ने बच्ची को गोद लेने का ऑफर दिया था. बच्ची को इलाज के लिए पास के अफरीन कस्बे के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. उसके शरीर पर चोट के निशान थे, वह ठंडी थी और मुश्किल से सांस ले रही थी. एक डॉक्टर की पत्नी अपने बच्चे के साथ उसे भी दूध पिला रही है. एक डॉक्टर ने कहा, “वह कड़ाके की ठंड के कारण हाइपोथर्मिया की चपेट में है. हमें उसे गर्म करना है और कैल्शियम दे रहे हैं.”
यूनिसेफ भी कर रही काम
अया सोमवार को आए 7.8 तीव्रता के भूकंप से अनाथ हुए कई बच्चों में से एक है. संयुक्त राष्ट्र की बाल एजेंसी यूनिसेफ ने कहा कि वह उन बच्चों की निगरानी कर रही है, जिनके माता-पिता लापता हैं या मारे गए हैं, और अस्पतालों के साथ समन्वय कर उन विस्तारित परिवार के सदस्यों को ट्रैक कर रहे हैं, जो उनकी देखभाल करने में सक्षम हो सकते हैं. तुर्की-सीरिया भूकंप में मरने वालों की संख्या 21,000 को पार कर गई है. चौथे दिन भी मलबे में दबे लोगों को बचाने के लिए चौबीसों घंटे बचाव के प्रयास किए जा रहे हैं.