जिले के स्कूलों में टॉयलेट नहीं होने या स्थिति उपयोग करने के लायक नहीं होने के कारण शिक्षिकाओं और छात्राओं को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्कूल आने के बाद शिक्षिकाएं घंटों इस डर से पानी नहीं पीती कि टॉयलेट न जाना पड़े। इस कारण कई शिक्षिकाएं यूरिन इंफेक्शन से पीड़ित हैं। इसे लेकर 26 जनवरी को दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर पर हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की बेंच ने सख्त नाराजगी जताते हुए कहा कि कितनी गलत बात है कि इतना ग्रांट मिलने के बाद भी ऐसा हो रहा है। सुविधाएं नहीं हैं। हाई कोर्ट ने इस मामले में शिक्षा सचिव से हलफनामा देने को कहा है। अब 10 फरवरी को सुनवाई होगी। स्कूलों में साफ-सुथरे टॉयलेट अनिवार्य हैं, लेकिन जिले के 150 सरकारी स्कूलों में टॉयलेट नहीं हैं। 200 से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं, जहां के टॉयलेट इस्तेमाल करने लायक नहीं हैं। कुछ स्कूलों को छोड़कर बाकी सभी में महिला व पुरुष शिक्षकों के लिए कॉमन टॉयलेट हैं। इस वजह से शिक्षिकाएं कम पानी पीती हैं, ताकि टॉयलेट ना जाना पड़े। कुछ पड़ोस के घरों का टॉयलेट इस्तेमाल करती हैं। ऐसे भी स्कूल हैं, जो मैदान में हैं और रास्ते से लोग आना-जाना करते हैं, वहां की शिक्षिकाएं छात्राओं को लेकर जाती हैं, ताकि उन्हें पास खड़ा कर वे लघुशंका कर सकें। इसी स्थिति से छात्राएं भी गुजरती हैं। ये सारी बातें भास्कर की पड़ताल में आई हैं। स्कूल शिक्षा विभाग हर साल करोड़ों रुपए का बजट खर्च करता है, लेकिन मूलभूत सुविधाएं देने की ओर जिम्मेदार ध्यान नहीं देते। पड़ोस में किराया देना पड़ता है: बिरकोना आशाबंद स्कूल महामाया नगर वार्ड क्रमांक 64 के प्राइमरी स्कूल मे 87 छात्र हैं। यहां दो शिक्षक हैं, टॉयलेट नहीं होने के कारण छात्र-छात्राएं बारी बारी मैदान में लघुशंका करते हैं। गंदगी होने के कारण संक्रमण होने का खतरा बना रहता है। स्कूल के शिक्षकों ने बताया वे लोग लघुशंका के लिए आसपास के घरों में बने टॉयलेट का उपयोग करते हैं। टॉयलेट उपयोग करने के लिए एक घर मालिक को 200 रुपए महीना देना पड़ता है। इसके अलावा हारपिक,फिनाइल भी देते हैं। वॉशरूम जाना न पड़े इसलिए पीती हैं कम पानी नगर निगम वार्ड क्रमांक 43 के प्राइमरी स्कूल में 4 शिक्षिकाएं हैं। स्कूल में 102 बच्चे पढ़ते हैं। शिक्षिकाओं ने बताया कि टॉयलेट नहीं होने से कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। टॉयलेट नहीं होने के कारण पानी बहुत कम पीती है, जिससे वॉशरूम न जाना पड़े। कई बार इमरजेंसी में छात्राओं को खड़ा कर लघुशंका करना पड़ता है। लंच में सभी शिक्षिकाएं पड़ोस के घर जाती हैं। वहीं स्कूल के बच्चे खुले मैदान में लघुशंका करते हैं। टॉयलेट लगने पर उन्हें घर भेज दिया जाता है। घर जाने के बाद कई बच्चे वापस स्कूल नहीं आते। इधर, ईसाई कब्रिस्तान में ही होगा पादरी का अंतिम संस्कार सुप्रीम कोर्ट ने बस्तर के ईसाई पादरी के अंतिम संस्कार को लेकर सोमवार को फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने अलग- अलग फैसले दिए, लेकिन शव के 7 जनवरी से शवगृह में होने के कारण लॉर्जर बेंच को नहीं भेजा। कोर्ट ने कहा कि शव को करकापाल गांव में ईसाइयों के लिए निर्धारित स्थान पर दफनाया जाए। इसके अलावा राज्य सरकार को पूरी व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए हैं। महार जाति में जन्मे पादरी की लंबी बीमारी के बाद 7 जनवरी को मृत्यु हो गई थी। उनके बेटे रमेश बघेल उन्हें गांव के कब्रिस्तान में दफनाना चाहते थे। स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के बाद बेटे ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका लगाई। जस्टिस बीडी गुरु की सिंगल बेंच ने गांव में दफनाने से अशांत और असहमति की स्थिति से बचने बघेल को अपने पिता को निकटतम कब्रिस्तान (करकापाल) में दफनाने को कहा था। इसके बाद बघेल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। कहा कि उनके परिवार के अन्य सदस्यों को भी उसी गांव के कब्रिस्तान में दफनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपीलकर्ता को अपने पिता के शव को अपनी निजी संपत्ति में दफनाने की अनुमति दी, जबकि जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि करकापाल गांव में ईसाइयों के लिए निर्धारित क्षेत्र में ही दफन करने को कहा। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि अपीलकर्ता के पिता के अंतिम संस्कार स्थल के बारे में पीठ के सदस्यों के बीच कोई सहमति नहीं है। हम इस मामले को लॉर्जर बेंच में नहीं भेजना चाहते हैं, क्योंकि शव पिछले तीन सप्ताह से शवगृह में है। मृतक के सम्मानजनक और शीघ्र अंतिम संस्कार के लिए हम अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए निर्देश जारी करने के लिए सहमत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- करकापाल में दफनाएं
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा है कि वे अपने पिता को करकापाल के कब्रिस्तान में दफनाएं। राज्य सरकार को याचिकाकर्ता और उनके परिवार को शव को जगदलपुर मेडिकल कॉलेज से करकापाल के कब्रिस्तान तक पहुंचाने में हर जरूरी मदद करने के निर्देश दिए हैं। पर्याप्त पुलिस सुरक्षा देने और जल्द से जल्द अंतिम संस्कार सुनिश्चित करने को कहा गया है। राज्य सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, एडवोकेट कौस्तुभ शुक्ला और रोहित शर्मा ने पैरवी की।
