CWG 2022: ओडिसा के केंद्रपारा के रहने वाले गुरुराजा पुजारी बेहद ही गरीब परिवार से आते हैं। उनके पिता ट्रक ड्राइवर के रूप में काम करते हैं। गुरुराजा इससे पहले भी 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं। वहीं बर्मिंघम में उन्होंने 151 किलो का भार उठाकर ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया।

बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के करीब 200 से अधिक एथलीट हिस्सा ले रहे हैं। खेल के इस महासमर के ओपनिंग सेरेमनी में पीवी सिंधु ने भारत झंडा थामते हुए देश की अगुवाई की। इस दौरान सभी एथलीटों के दिल में बस एक ही ख्याल चल रहा था कि वह मेडल जीतकर देश का नाम रौशन करें। खिलाड़ियों की इसी भीड़ में छोटे कद काठी के वेटलिफ्टर गुरुराजा पुजारी भी जिन्होंने CWG के दूसरे ही दिन भारत की झोली में ब्रॉन्ज मेडल डाला। उन्होंने क्लीन एंड जर्क के अपने तीसरे प्रयास में 151 किलो का भार उठाकर मेडल को पक्का किया। यह वजन उनके अपने निजी 148 भार उठाने के रिकॉर्ड से तीन किलो अधिक था।

कर्नाटक के कुंडापुर के रहने वाले गुरुराजा पुजारी बेहद ही गरीब परिवार से आते हैं। उनके पिता ट्रक ड्राइवर के रूप में काम करते हैं। गुरुराजा इससे पहले भी 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं। पिछले राष्ट्रमंडल खेलों में 29 साल के गुरुराजा 56 किलोग्राम भार वर्ग में 249 किलोग्राम भार उठाया था।गुरुराजा की कहानी है फिल्मी

देश के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने वाले गुरुराजा पुजारी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। साल 2008 ओलिंपिक में गुरुराजा ने सुशील कुमार के गले में जब मेडल देखा था उसी दौरान उन्होंने ठान लिया कि वह कुश्ती में अपना करियर बनाएंगे। इसके लिए वे अखाड़ा जाना शुरू कर दिया लेकिन उनके स्कूल टीचर ने उन्हें सलाद ही की वह कुश्ती की जगह वेटलिफ्टिंग में हाथ आजमाए।

टीचर की सलाह मानकर वह वेटलिफ्टिंग में खुद झोंक दिए लेकिन इस दौरान उनके सामने चुनौतियां भी बहुत आई। उनके पिता महाबाला पुजारी के पास इतना पैसा नहीं था कि वह उन्हें अच्छी डाइट दे पाएं। उनके पिता को बाहर के लोगों से काफी कुछ सुनने को भी मिलता था कि वह कब अपने बेटे के लिए यह सब करता रहेगा।

एयरफोर्स में मिली नौकरीवेटलिफ्टिंग में गुरुराजा ने धीरे-धीरे खूब नाम कमाना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होंने जो भी इनाम जीता वह खुद की डाइट पर खर्च करते गए। ऐसे में वह नौकरी तलाश में सेना में भर्ती होने की कोशिश कि लेकिन छोटे कद के कारण वहां उन्हें मौका नहीं मिला। ऐसे में वह हताश हो गए लेकिन किसी से उन्हें जानकारी मिली की एयरफोर्टे में कद को लेकर रियायत मिलती है। फिर क्या था उन्होंने एयरफोर्स ज्वाइन कर लिया।

इसके बाद से वह पीछे मुड़ कर नहीं देखे और वेटलिफ्टिंग में देश का नाम रौशन करते आ रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *