केंद्र सरकार ने वित्त पोषित उच्च शिक्षा संस्थानों को शिक्षकों के खाली पदों को भरने के निर्देश दिए हैं। सरकार ने इस शिक्षक दिवस (5 सितंबर) से मिशन मोड पर, विशेष रूप से आरक्षित श्रेणियों में खाली पड़े शिक्षण पदों को भरने के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक वर्ष की समय सीमा निर्धारित की है। सरकार का कहना है कि 2022 सितंबर तक यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाए। इसके साथ ही संस्थानों को सितंबर 2021 से केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय (MoE) को इस संबंध में मासिक कार्रवाई की रिपोर्ट भेजने को कहा है।
टीओआई ने अपनी 24 और 31 जुलाई, 2021 रिपोर्ट मे कहा था कि, दिल्ली विश्वविद्यालय सहित 44 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से 15 में स्वीकृत टीचर्स के पदों में से 40% से अधिक रिक्त हैं। इसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय और ओडिशा के केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षण पदों पर 70% से अधिक पद खाली हैं। वहीं मीडिया रिपोर्ट में सरकारी आंकड़ों के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्वीकृत 18,911 शिक्षण पदों में से 6,000 से अधिक रिक्त पड़े हैं। इसके अलावा 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य तकनीकी और अनुसंधान संगठनों में स्वीकृत ओबीसी पदों में से 55% से अधिक रिक्त हैं। वहीं इन संस्थानों में अनुसूचित जाति के 41% पद और एसटी के 39% पद भी खाली पड़े हैं।
शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा सचिव, अमित खरे ने इस संबंध में एक पत्र लिखकर संस्थानों को सूचित किया, “मैं रिक्त पड़े संकाय पदों के संबंध में लिख रहा हूं, खासतौर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के संबंध में। शिक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत यह निर्णय लिया गया है कि सभी केंद्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों (सीएचईएल) में इन रिक्तियों को 5 सितंबर, 2021 से शुरू होकर 4 सितंबर, 2022 तक एक वर्ष की अवधि के भीतर मिशन मोड में भरें और की गई कार्रवाई और प्रगति के बारे में रिपोर्ट करें।
MoE के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय में सबसे अधिक शिक्षकों के पद खाली हैं। इनमें से 1,706 स्वीकृत पदों में से 846 अभी भी खाली हैं। वहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 863 शिक्षकों के 598 पद रिक्त हैं। इस आधार पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों (44 में से 23) में 30% से ज्यादा पद खाली हैं।