युक्तियुक्तकरण से थुलथुली गांव में हुई अतिरिक्त शिक्षक की पदस्थापना
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के ओरछा विकासखण्ड में बसा एक शांत और हरा-भरा गांव थुलथुली। चारों ओर घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा यह गांव अपनी सादगी में बसी कहानियों का गवाह रहा है। यहां के बच्चे भी बाकी बच्चों की तरह हँसते-खेलते हैं, लेकिन उनकी हँसी स्कूल की दहलीज़ पर पहुंचते ही जैसे धीमी पड़ जाती थी। शासकीय बालक आश्रम शाला, थुलथुली में भवन तो था, कक्षाएँ थीं, पर शिक्षकों की कमी थी। स्कूल खुलता तो था, पर खाली कमरों में बच्चों के सपनों की आवाज़ खो जाती थी। माता-पिता चिंतित थे, वे चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़ें-लिखें, जीवन में कुछ बनें। लेकिन शिक्षा, उनके लिए एक अधूरा सपना बन गई थी। लेकिन कहते हैं अंधेरा चाहे जितना भी गहरा हो, एक छोटी सी रोशनी भी उसे चीर सकती है।
इस रोशनी का नाम है युक्तियुक्तकरण। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लागू की गई इस योजना का उद्देश्य है स्कूलों में बच्चों की संख्या के अनुसार शिक्षकों की पदस्थापना करना। यही योजना थुलथुली तक भी पहुँची और एक नई सुबह की शुरुआत हुई। इस बदलाव के नायक बने सहायक शिक्षक श्री शोभीराम मरकाम। पहले वे प्राथमिक शाला कुर्सीनवार में पदस्थ थे, लेकिन जैसे ही उन्हें थुलथुली में पदस्थापना का अवसर मिला, उन्होंने इसे केवल एक नौकरी नहीं, एक मिशन की तरह अपनाया। श्री मरकाम कहते हैं कि जब मुझे थुलथुली में पदस्थ होने का मौका मिला, तो लगा जैसे मेरे जीवन का उद्देश्य मिल गया। उनका मानना है कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं है, बल्कि वह बच्चों को अनुशासन, नैतिकता और एक बेहतर नागरिक बनने की दिशा दिखाती है। उन्होंने बच्चों को न केवल अक्षरज्ञान देना शुरू किया, बल्कि उनमें उम्मीदें जगाईं, सपनों के पंख दिए।
शिक्षक मरकाम कहते हैं कि एक सच्चा शिक्षक वह होता है जो अपना सम्पूर्ण ज्ञान और क्षमता अपने शिष्य के भविष्य को निखारने में लगा दे। उनका परिवार भी उनकी इस नियुक्ति से खुश है, और गांव के लोग उन्हें आशा की किरण मानते हैं। इस सफलता का श्रेय वे प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय को देते हैं, जिनकी पहल ने प्रशासनिक सुधार से बढ़कर एक सामाजिक बदलाव की शुरुआत की। शिक्षक शोभीराम नेताम भी मानते हैं कि युक्तियुक्तकरण उन गांवों में शिक्षा लौटा रही है। थुलथुली की कहानी आज केवल एक गांव की नहीं रही, यह एक विचार की कहानी है कि जब नीयत नेक हो और प्रयास सच्चे, तो कोई भी बदलाव असंभव नहीं होता। थुलथुली अब साक्षी है उस परिवर्तन की, जहाँ शिक्षकों की लगन से पूरे गांव की तक़दीर बदलेगी।