माध्यमिक शिक्षा मंडल (माशिमं) में स्टाफ की कमी और अव्यवस्था का खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। नियम के अनुसार 15 दिन के अंदर डुप्लीकेट और संशोधित मार्कशीट, टीसी, माइग्रेशन देने का प्रावधान है। लेकिन आठ महीने से एक साल तक चक्कर लगाना पड़ रहा है। अविभाजित एमपी के मार्कशीट में सुधार एक तरह से बंद हो गया है, क्योंकि माशिमं के पास स्टेशनरी नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि 2000 से पहले वालों की मार्कशीट की सुधार और डुप्लीकेट बनाने के लिए उनके पास स्टेशनरी नहीं है। वे एमपी को इसके लिए कई बार पत्र भेज चुके हैं, लेकिन वहां से स्टेशनरी कागज नहीं भेजी गई है। माशिमं की ओर से कागज छपवाने की बात भी कही गई है, लेकिन इसके लिए भी एमपी से अनुमति नहीं मिल रही है। एमपी से नहीं मिल रही अनुमति ^ एमपी को कई बार पत्र भेजा गया कि वे या तो हमें कागज दें या तो यहां छापने की अनुमति दें। लेकिन हमें स्पष्ट जवाब नहीं मिल रहा है। बाकी त्रुटि सुधार में जिन छात्रों को समय लग रहा है, उनके आवेदन में दस्तावेज की कमी हो सकती है अन्यथा सुधार कार्य और डुप्लीकेट जल्द हो जाता है।
पुष्पा साहू, सचिव माशिमं केस -1 5 माह में नाम नहीं सुधर पाया
मैं अजय कुमार हूं, घर बिलासपुर में है। अभी भोपाल में काम करता हूं। करीब 5 माह पहले माध्यमिक शिक्षा मंडल में अपनी मां की बारहवीं की मार्कशीट पर नाम सुधारने के लिए आवेदन किया था। तब से अब तक चार बार दफ्तर का चक्कर काट चुका हूं। पहले बिलासपुर कार्यालय गया, वहां से एक अधिकारी ने नाम लिखकर रायपुर भेजा। बड़े अधिकारियों से मिलने नहीं देते। गार्ड नीचे ही रोक देता है। आज तो एक ने यह तक कह दिया है कि अभी यहां स्टेशनरी नहीं है। केस -2 10 माह में 7 बार लगा चुका हूं चक्कर
मैं सुधांशु मिश्रा हूं, सिमगा में रहता हूं। 10वीं के मार्कशीट में मेरी मां का नाम प्रतिभा की जगह प्रतिमा हो गया है। इसे सुधरवाने के लिए 10 माह पहले आवेदन दिया था। तब से अब तक 7 बार चक्कर काट चुका हूं। डेढ़ माह पहले मैं माशिमं की सचिव मैंडम से भी मिला था। उन्होंने कहा था कि एक हफ्ते बाद सुधार हो जाएगा। लेकिन अब तक नहीं हुआ है। कार्यालय में ऊपर किसी से मिलने भी नहीं देते हैं। अब क्या करुं, समझ में नहीं आ रहा। एमपी में डुप्लीकेट देने का नियम नहीं
जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश में डुप्लीकेट मार्कशीट देने का नियम नहीं है। वहां अगर किसी की मार्कशीट में कई सुधार करना होता है तो वे ओरिजनल मार्कशीट में ही काटछांट कर देते हैं। इसके अलावा उसे अॉनलाइन अपडेट किया जाता है, जिसकी फोटोकॉपी दी जाती है। इसी के कारण अब तक एमपी से स्टेशनरी कागज उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। रोजाना 20-25 छात्र पहुंचते हैं कार्यालय
माशिमं प्रदेशभर से माशिमं कार्यालय में ऑनलाइन और ऑफलाइन हर दिन 20 से 25 आवेदन पहुंचते हैं। ब्लाक स्तर पर आवेदन होने के बाद सभी को रायपुर भेजा जाता है। इन आवेदनों में सबसे ज्यादा आवेदन त्रुटि सुधार के होते हैं। इसके बाद डुप्लीकेट मार्कशीट के आवेदन आते हैं। आवेदन करने के बाद पहले एक से तीन महीने में काम होने का आश्वासन दिया जाता है। इसमें 8 से 10 माह लग रहा। स्टाफ की कमी से रिकॉर्ड भी अपडेट नहीं हो रहे
मंडल के जिला कार्यालयों में दैनिक वेतनभोगियों के भरोसे काम हो रहा है। पूरे प्रदेश में ग्रेड एक से ग्रेड 3 तक के पद खाली हैं। कर्मचारी न होने के कारण रिकॉर्ड अपडेट नहीं हो पा रहा है। विभागीय अधिकारी कई बार अधीनस्थों को इस संबंध में निर्देश जारी कर चुके हैं। इसके बाद भी अव्यवस्था नहीं सुधर रही है। आवेदनकर्ता परेशान हो रहे हैं। छात्र जब यहां के स्टाफ को उनके आवेदन ट्रेस करने कहते हैं, तो वे ट्रेस भी नहीं कर पाते। ऑनलाइन में छात्रों को केवल सबमिटेड का स्टेटस दिखाई देता है।
