छत्तीसगढ़ के कई जिलों के अस्पतालों ने स्वास्थ्य विभाग के मुख्यालय को पत्र लिखकर रीएजेंट मांगा ही नहीं था। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग ने 2023 में दवा खरीदी करने वाली एजेंसी सीजीएमएससी को पत्र लिखकर 350 करोड़ से ज्यादा का रीएजेंट खरीदी करने का आर्डर दे दिया। स्वास्थ्य विभाग की ओर से सीजीएमएससी को भेजे गए पत्र में दो किस्तों में पूरा स्टॉक सप्लाई करने को कहा गया था। सीजीएमएससी ने टेंडर किया और मोक्क्षित कार्पाेरेशन को आर्डर दे दिया। कंपनी ने एक महीने के भीतर केवल दो खेप में पूरा स्टॉक सप्लाई कर दिया। पहली खेप का स्टॉक तो कार्पोरेशन और राज्य के बड़े अस्पतालों के गोदाम में रखवा दिया गया, पर दूसरी खेप का स्टॉक जब लाया गया तब उसे रखने की जगह नहीं बची थी। उस समय रातों रात पूरा स्टॉक प्रदेश के एक-एक हेल्थ सेंटरों यहां तक कि छोटे-छोटे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी भिजवा दिया गया। जबकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में खून की जांच करने वाले तकनीशियन और लैब तो दूर फ्रिज तक नहीं थे। ताकि उन्हें निर्धारित तापमान में रखा जा सके। लाखों का रीएजेंट ऐसे ही खुले में सामान्य तापमान में रखा गया था। इस पूरी खरीदी में स्वास्थ्य विभाग और सीजीएमएससी के तत्कालीन आला अफसर भी जांच के घेरे में हैं। भास्कर ने स्टिंग ऑपरेशन के जरिये पूरे स्कैम का खुलासा किया था। इस पर विधानसभा में सवाल उठाए गए। उसके बाद स्वास्थ्य मंत्री ने घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू से करवाने की घोषणा की थी। बिग बुल कहा जाता है दवा कंपनी की दुनिया में
सीजीएमएससी में दवा की सप्लाई करने वाली एजेंसियों के ग्रुप में मोक्क्षित कार्पोरेशन को बिग बुल कहा जाता था। पड़ताल में पता चला है कि 2017-18 से ही कंपनी ने सीजीएमएससी में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी। कांग्रेस के शासनकाल में कंपनी का सीजीएमएससी में इतना वर्चस्व हो गया था कि दूसरी किसी कंपनी को कोई आर्डर नहीं मिलता था। 2 से 8 डिग्री तापमान में रखना था, फिर भी रूम टेंप्रेचर में रखा, बाद में खरीदे 60 करोड़ के फ्रिज: पैथालॉजी के विशेषज्ञों के अनुसार रीएजेंट 220 से ज्यादा किस्म के आते हैं। इनमें अधिकतर जांच में बायो कमेस्ट्री रीएजेंट उपयोग होता है। इस रीएजेंट को 2 से 8 डिग्री तापमान यानी फ्रिज के टेंप्रेचर में रखना अनिवार्य होता है। स्वास्थ्य विभाग ने करोड़ों के रीएजेंट ऐसे हेल्थ सेंटरों में रखवा दिए थे जहां फ्रिज तक नहीं थे। बाद में इन्हें बचाने के लिए 60 करोड़ के फ्रिज खरीदे। 20 करोड़ को हो चुके एक्सपायर: करोड़ों के बेजरूरी रीएजेंट अभी भी सीजीएमएससी और अस्पतालों के गोदाम में रखे हैं। पिछले महीने तक करीब 20 करोड़ के रीएजेंट एक्सपायर होकर खराब हो चुके हैं। दो तीन माह के भीतर 80 करोड़ का रीएजेंट एक्सपायर हो जाएगा। फैक्ट्री ही नहीं, फिर भी करोड़ों ठेका सीजीएमएससी ने जिस मोक्क्षित कार्पाेरेशन को करोड़ों के रीएजेंट सप्लाई का ठेका दिया था, उसकी खुद कोई फैक्ट्री ही नहीं थी। कंपनी अलग-अलग कंपनी से रीएजेंट खरीदकर सरकार को सप्लाई कर रही थी। राज्य में सरकार बदलने के बाद जब खरीदी का घोटाला उजागर हुआ तक दुर्ग में आनन-फानन में फैक्ट्री खोली गई। हालांकि अब तक फैक्ट्री चालू नहीं हुई है। ईओडब्ल्यू-एसीबी की टीम जब फैक्ट्री जांच करने घुसी तब अफसर ये देखकर हैरान रह गए कि वहां किसी भी तरह के रीएजेंट केमिकल का प्रोडक्शन ही नहीं हो रहा है। सीजीएमएससी ने इसके बावजूद ऐसी कंपनी को खून की जांच में उपयोग होने वाले रीएजेंट केमिकल की सप्लाई का ठेका दे दिया। हैरानी की बात है कि जब कंपनी को ठेका दिया गया था तब तो फैक्ट्री का काम भी चालू नहीं हुआ था।

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